पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१६२

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(१५४ ). ताजिकनीलकण्ठी । यात्रा होने और नवमेश अपना तेज लग्नेशको देता हो तो अचिंतित यात्रा होवे, ऐसे ही वर्पलमेश वर्पेशका तथा लग्नेश मुंथेशका योग भी फल देता है ॥ ५ ॥ अनुष्टु० - गुरुस्थाने कुजे धर्मेसद्यात्राभृत्य वित्तदा ॥ ज्ञस्थाने लगपाद्भौमोदृष्टः सद्यानसौख्यदः ॥ ६ ॥ जन्मकालमें बृहस्पति जिस राशिका है उसीमें वर्चका मंगल नवमस्थान में हो तो गमनमें मृत्यु और धनकी प्राप्ति होवे, और जन्मका बुध जिस राशि में है उसी राशिमें वर्षका मंगल हो और लमेशकी दृष्टि उसपर हो तो गमन में सौख्य होवे ॥ ६ ॥ अनुष्टु० - स्वस्थानगोवावलवाँलग्रदर्शीसुयानदः || जन्माधिकारीज्ञोमंदस्थाने क्रूरतोयदा ॥ ७ ॥ पंथारिपोर्झकटकाद्वरुर ध्वेंदुजीक्योः || धर्मेशनिर्वाधिकारीपंथानमशुभ॑वदेत् ॥ ८ ॥ जन्मका मंगल अपनी राशि १ |८ में हो वर्षमेंभी अपनी राशिका नवमस्थान में हो और सावयव दृष्टि स्पष्टसे भावानुसार लगको देखता हो तो गमनमें खुशी होवे, शुभकाय संबंधी गमन होवे १ और जन्मका अधिकारी बुध शनिकी राशिमें होवे और वर्षमें पापयुक्त नवम स्थानमें हो तो शत्रुकलह सम्बन्धी मार्ग चलना होवे. ऐसेही चन्द्रमा और बृहस्पति का भी जन्ममें शनि सहित और वर्ष में पापयुक्त नवम स्थानमें हो तो विना प्रयोजन दीर्घमार्ग चलना होवे, मंगलसे भी ऐसा योग होता है, और अधिकार रहित शनि वर्षमें नवम स्थानगत हो तो चौरादि उपद्रवयुक्त मार्गमें गमन होवे ॥ ७ ॥ ८ ॥ अनुष्टु० - इत्थंगुरौदूरयात्रानृपसंगस्ततोगुणः ॥ कुजेन्दपेनष्टब लेस्वजनादूरतोगतिः ॥ ९ ॥ ऐसेही बृहस्पति अधिकार रहित नवम स्थान में हो तो दूरगमन और राजाका संग तथा लाभादि गुण होवें तथा मंगल बलरहित होकर नवम स्थानमें हों तो अपने बन्धुजनोंसे दूर गमन होवे ॥ ९ ॥