पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१३१

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भाषाटीकासमेता । ( १२३ ) अनुष्टु० - निर्बलौ धर्मवित्तेशौं दुष्टखेटास्तनौस्थिताः ॥ लक्ष्मीविराजिता नश्ये दिशेपि रक्षिता ॥ ८ ॥ धर्मस्थान ९ का स्वामी तथा धन स्थान २ का स्वामी निर्बल हो और पापग्रह लग्न में हो तो इंद्र भी रक्षा करने आयें तो भी बहुत दिनोंका सचित धन नष्ट होजावे ॥ ८ ॥ · अनुष्टु० - नीचेचंद्रेस्तगास्सौम्यावियोगःस्वजनैः सह ॥ . शरीरपीडा मृत्युर्वा साधिव्याधिभयं द्रुतम् ॥ ९ ॥ चंद्रमा नीचराशि ८ में हो तथा शुभग्रह अस्तंगत हो तो अपने मनुष्यों साथ बिछोह होवे तथा शरीरपीडा वा मृत्यु अथवा मानसीव्यथा रोग- भय शीघ्र ही एकसे एक होवे ॥ ९ ॥ अ० - अब्दल जन्मलग्न राशिभ्यामष्टमं यदा || कष्टं महाव्याधिभयं मृत्युः पापयुतेक्षणात् ॥ १० ॥ वर्षलग्न जन्मलन जन्मराशिसे अष्टम हो तो कष्ट और महारोग क्षया- दिका भय होवे, ऐसे अष्टम लग्नपर पापग्रहकी दृष्टि वा पापग्रहका योग होने तो मृत्युं होवे ॥ १० ॥ अनुष्टु० - जन्मन्यष्टमगः पापो वर्षलग्ने रुगाधिदः || चंद्राब्दल पौ नष्टबलौ चेत्स्यात्तदा मृतिः ॥ ११ ॥ जन्मकालमें जो ग्रह अष्टम है वही वर्षमें लग्नका हो तो रोग तथा मान- सीव्यथा देता है, जो चंद्रमा और लग्नेश दोनों ( नष्टबल ) ५ से हीन होवें तो मृत्यु होवे ॥ ११ ॥ अनुष्ट ० - जन्माब्दलग्नपौ पाप पतितस्थितौ ॥ रोगाधिदौमृत्युकरावस्तगौ नेक्षितौ भैः ॥ १२ ॥ जन्मलग्नेश तथा वर्षलग्नेश भी पापयुक्त होकर अष्टमस्थानमें हों तो रोग और मानसीव्यथा देते हैं और अस्तंगत तथा शुभग्रह दृष्टिरहित भी हों. तो मृत्यु करते हैं ॥ १२ ॥