पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१३०

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( १२२ ) ताजिकनीलकण्ठी । सूर्य्यकी दृष्टिभी हो तो मृत्यु वा कुष्ठ कंडू (खुजली) और आपत्ति देता है ।। ३ ।। अनुष्टु० - क्रूरमूसरिफोब्देशोजन्मेशः रितः शुभैः ॥ कंबूलेपि विपन्मृत्युरित्थमन्याधिक रेतः ॥ ४ ॥ वर्षेशके साथ क्रूर ग्रहका भूसरीफ हो तथा जन्मलग्नेश क्रूर होगया हो जैसे पापयुक्त वुध क्षीणचंद्रमा शुभभी कर है और चंद्रमादि शुभग्रह कंबूल योगभी करे तो विपत्ति अथवा मृत्यु होवे. ऐसेही जन्मलग्नेश वर्ष- .लग्नेश मुंथेश आदि पंचाधिकारियोंसे भी यही योग होता है, जैसे यहां वर्षेश. क्रूर मूसरीफी कहा तैसेही मुंथेशादि क्रूर मूसरीफी और कंबूल पर्वचंद्रमाका ही कहा है यहां उसी विधिसे सभी शुभ ग्रहोंका विचारना ॥ ४ ॥ अनुष्टु० - अस्तगौ मुथहालग्ननाथौ मदेक्षितौ यदा || सर्वनाशो मृतिः कष्टमाधिव्याधिभयं भवेत् ॥ ५ ॥ मुंथेश और लगेश अस्तंगत हों इनपर शनिकी दृष्टिभी हो तो स्त्री पुत्रादि सर्वनाश अथवा मृत्युतुल्य कष्ठ वा कुष्ठ और मानसीचिंता शरीर- • पीडा आदिसे भय होवे ॥ ५ ॥ अनुष्टु० - क्रूरावीयिधिकाः सौम्या निर्बला रिपुरंध्रगाः ॥ तदाधिव्याधिभीतिः स्यात्कलिनिस्तथा विपत् ॥ ६ ॥ क्रूरग्रह बलवान् अर्थात् पंचवर्गीमें १५ से अधिक बली और ३१ ६ । ११ स्थानोंमें हों तथा शुभग्रह निर्बल अर्थात् पंचवर्गीमें ५ से न्यून बल हों और ६ |८|१२ स्थानों में हों तो मानसीव्यथा और रोग भय हो. तथा कलह धनहानि और विपत्ति होवें ॥ ६ ॥ अनु ० - नीचे शुक्रो गुरुः शत्रुभागे सौख्यलवोपि न ॥ लग्रेशेऽष्टमगेष्टेश तनौ वा मृतिमादिशेत् ॥ ७ ॥ शुक्र नीचराशि ६ में और बृहस्पति शत्रुके अंशकमें हो तो उस वर्ष में सुखका अंशभी न होवे १. और लग्नेश अष्टम अष्टमेश लग्नमें हो तो मृत्यु होवें ये २ योग हैं ॥ ७॥