पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१०४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

( ९६ ) ताजिकनीलकण्ठी । तथा मानका नाश कर्त्ता है; उत्तरार्द्धमें शुभ फल देता है, जो पाप शुभसे दृष्ट युक्त होकर शुभ ग्रहसे इत्यशाली हो तो वर्षपूर्वार्द्ध में शुभ उत्तरार्द्ध में अशुभ फल देता है सभी प्रकार मिश्र हो तो संपूर्ण वर्ष में मिश्रही फल करता है, केवल इत्थशालीभी एक राशि साहित्य से पूर्वार्द्ध में भिन्नराशि साहित्यसे उत्त- राईमें शुभ फल सौख्य वाहन शस्त्रांदि वा वस्त्रादि लाभ देता है ( वस्खलाभम् ) ऐसा भी पाठहै ।। ५३ ॥ २८ ॥ रथोद्ध॰ - कर्मभावसहमाधिपाः शुभैः स्वामिनासुथशिलाबलान्विताः ॥ हेमवाजिगजभूमिलाभदाः पापदृष्टियुतितोऽशुभप्रदाः ॥ ५४ ॥ २९ ॥ कर्मभाव, कर्मभावेश, तथा कर्मसहम, कर्मसहमेश, ये चारों प्रागुक्त रीतिसे बलवानहों अर्थात् स्वस्वामी शुभग्रह युक्त दृष्ट तथा शुभग्रहके साथ इत्थशाली हों तो सुवर्ण घोडा हाथी भूमि इनका लाभ देते हैं जो पापयुत दृष्ट वा पापग्रहसे इत्थशाली हों तो द्रव्यंका नाशादि अशुभ फल देते हैं ॥ ५४॥ २९॥ शालि०-- दग्धावकाः कर्मवैकल्यदास्तेयुक्तांदृष्टाः सौरिणातेविशेषात् ॥ राज्यभ्रंशः कर्मनाशश्चराज कर्मेशौचेन्मूशरीफौखलेन ॥ ५५ ॥ ३० ॥ पूर्वोक्त कर्मभाव सहमाधिपति पापग्रह युक्त वा दृष्ट अथवा पापसे इत्थशाली हो तो कर्मकी विकलता ( नाश ) देता है, यद्धा शनिसे युक्त वा दृष्ट हो तो विशेष करके कर्मका नाश करता है, ऐसे ही दग्ध ( पापकर्त्त- दिसे उपद्रुत ) तथा वक्र ( विपरीत गति ) होनेमें भी फल देते हैं तथा राज्य सहमेश, कर्मभावेश, राज्यभावेश, कर्मसहमेश, जो पापग्रह से मुथशिली हों उपलक्षणसे क्रूरयुक्त दृष्ट हों तो राज्यनाश पापमूशरीफसेभी यही फलहैं तथा सुवर्णादि द्रव्यका नाश करतेहैं शुभ पापसे तुल्य योग दृष्टि वा मूशरीफ हो तो फल बलाबलके तारतम्यसे विचार के कहना इसीप्रकार माता आदि सह- मोंका विचार करना ॥ ५५ ॥ ३० ॥ 6- अनु० - उपदेष्टागुरुर्ज्ञानविद्याशास्त्रंश्रुतिस्मृती ॥ मोहोजाड्यंवलंसैन्य मंगंदेहोजलंयुतिः ॥ ५६ ॥ ३१ ॥ -