भाषाटीकासमेता । (९५) चरराशिमें हो तो पिता विदेशमें मरजावे, स्थिरराशिमें हो तो स्वदेशमें मरे ॥ ४९ ॥ २४ ॥ उपजा० - शुभेत्थशालेखलखेट्योगेगदप्रकोपःप्रथमंमहान्स्यात् ॥ पश्चात्सुखंविंदतिपूर्णवीर्य्येनाथेनृपान्मानयशोऽभिवृद्धिः॥५०॥२५॥ पितृसहम स्वस्वामीसे वा शुभग्रहसे इत्थशाली हो और पापग्रहसे युक्तभी हो तो वर्षके पूर्वार्द्ध में रोगवृद्धि होवेउत्तरार्द्धमें सुख होवे, जब पितृसहम स्वामी पूर्ण वीर्य्य १५ विश्वासे अधिक बल होकर शुभस्थानमें हो तो राजासे मान तथा यशकी वृद्धि होवे, मातृसहममेंभी ऐसाही जानना ॥ ५० ॥ २५ ॥ रथोद्धता बंधनाख्य सहमंयुतेक्षितंस्वामिन नहितदास्तिबंधनम् ॥ पापवीक्षित तेस्तुबंधनं पापजे सुथशिले विशेषतः ॥ ५१ ॥ २६ ॥ बन्धनसहम स्वस्वामी वा शुभग्रह युक्तं दृष्ट हो तो बंधन ( कारागार ) आदिका भय नहीं होता, पापयुक्तवीक्षितसे तथा पापेत्थशाल से बंधन होता है यहभी फल विपरीतही जानना चाहिये ॥ ५१ ॥ २६ ॥ रथोद्ध० - गौरवाख्यसहमंयुतेक्षितं स्वामिनाशुभखगैः सुखाप्तये ॥ राजगौरवयशोंबरातयः पापवीक्षणयुतेपदक्षतिः ॥ ५२ ॥ २७ ॥ गौरव सहम स्वस्वामी वा शुभग्रहसे युक्त दृष्ट हो तो सुख प्राति और राज्य गुरुता अर्थात् बडप्पन और यश तथा वस्त्रप्राप्ति होती है इत्थशाली शुभग्रहसेमी हो तो घन, वाहन, यश और सुख मिलते हैं जो पापग्रह से युक्त दृष्ट वा इत्थशाली हो तो पद ( अधिकार ) तथा धननाश सौख्य नाश करता है ॥ ५२ ॥ २७ ॥ उपजा० - शुभाशुभैर्दृष्टयुतंखलैश्चेत्कृतेत्थशालंघनमाननाशम् ॥ पूर्वैविधत्तेचर मेशुभेत्थशालेसुखंवाहनशस्त्रलाभम् ॥ ५३ ॥ २८ ॥ गौरवसहमका फल और भी कहते हैं कि जो यह शुभ पाप दोनहूं प्रका- रके ग्रहोंसे युक्त वा दृष्ट हो और पापग्रह से इत्थशाली हो तो पूर्वार्ध में धन J