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पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५२७

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५०६ वायुपुराणम् आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्चैव ते त्रयः | अर्थशास्त्रं चतुर्थं तु विद्यास्त्वष्टादशैव तु ज्ञया ब्रह्मर्पयः पूर्वं तेभ्यो देवर्पयः पुनः । राजर्षयः पुनस्तेभ्य ऋषिप्रकृतयस्त्रयः ॥ तेभ्य ऋऋषिकृतयो मुनिभिः संशितव्रतैः कश्यपेषु वसिष्ठेषु तथा भृग्वङ्गरोऽत्रिषु | पञ्चस्वेतेषु जायन्ते गोत्रेषु ब्रह्मवादिनः || यस्मादृपत्ति ब्रह्माणं तेन ब्रह्मर्धयः स्मृताः धर्मस्याथ पुलस्त्यस्य कृतोच पुलहस्य च । प्रत्यूषस्य प्रभातस्य कश्यपस्य तथा पुनः देवर्षयः सुतास्तेषां नामतस्तान्निबोधत | देवर्षी धर्मपुत्रौ तु नरनारायणावुभौ बालखिल्यः कृतोः पुत्राः कर्दमः पुलहस्य तु | कुवेरश्चैव पौलस्त्यः प्रत्यूषस्याचलः स्मृतः पर्वतो नारदश्चैव कश्यपस्यात्मजावुभौ । ऋषन्ति देवान्यस्मात्ते तस्माद्देवर्षयः स्मृताः मानवे नैपये वंशे ऐडवंशे च ये नृपाः | ऐडा ऐक्ष्याकनाभागा ज्ञेया राजर्षयस्तु ते ऋपन्ति रञ्जनाद्यस्मात्प्रजा राजर्षयस्ततः । ब्रह्मलोकप्रतिष्ठास्तु स्मृता ब्रह्मर्षयो मताः देवलोकप्रतिष्ठाश्च ज्ञेया देवर्षयः शुभाः | इन्द्रलोकप्रतिष्ठास्तु सर्वे राजर्षयो मताः ।।७६ ॥८० ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८४ ॥८५ ॥८६ ॥८७ ॥८८ वेद (ऋक्, साम, यजु और अथर्व ) मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र और पुराण – ये चौदह विद्याएँ है । इनके अतिरिक्त आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद एवं अर्थशास्त्र इन चारों को मिलाकर विद्याओं की संख्या अठारह होती है ।७५-७६। सर्वप्रथम ब्रह्मपियों को जानना चाहिये, उनसे देवपियो को तथा देवपियों से राजर्षियों को जानना चाहिये, ये तीन ऋपियो के उत्त्पत्तिकर्ता है। इन्ही से समस्त ऋषिगणों की उत्पत्ति होती है। जो भली भाँति नियमों का पालन करने वाले ऋषियों की संताने है | कश्यप, वसिष्ठ, भृगु, अंगिरा और अत्रि इन पाँचो गोत्रों में ब्रह्मवादी ऋषियों की उत्पत्ति होती है । यतः वे ब्रह्म तक पहुँचने वाले है, ब्रह्मवेत्ता है, अतः ब्रह्मप नाम से स्मरण किये जाते है |८०-८१॥ धर्म, पुलस्त्य, ऋतु, पुलह, प्रत्यूष, प्रभास और कश्यप—इनके पुत्रो को देवप कहा जाता है, अव उनके नाम सुनिये | धर्म के दो पुत्र राजषि नर और नारायण हैं। वालखिल्य गण ऋतु के पुत्र हैं, पुलह के पुत्र का नाम कर्दम है । पुलत्य के पुत्र कुवेर हैं, प्रत्यूप के अचल हैं, पर्वत और नारद — ये दोनो कश्यप के पुत्र है । यतः ये देवताओ तक पहुँचते है, अतः देवपि के नाम से प्रसिद्ध है |८२-८५० मनु द्वारा प्रदर्तित वैपय एवं ऐड वंश में होनेवाले ऐड, ऐक्ष्वाक और नाभाग - इनको राजपि जानना चाहिये । यतः वे प्रजाओं का रंजन करते हुए उनकी बुद्धि एवं भावनाओं तक पहुँचनेवाले होते है, अतः राजर्षि नाम से प्रसिद्ध है । जो लोग ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करते है वे ब्रह्मपि माने जाते है। कल्याणकारी, देवलोक मे प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले ऋषिगण देवर्षि नाम से प्रसिद्ध हैं । इन्द्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले सभी ऋषि राजपि नाम से विख्यात है |८६-८८ उत्तम कुल में उत्पत्ति, तपस्या और मंत्रों की व्याख्या अथवा