पृष्ठम्:Advaita Siddhi with Guru Chandrika vyakhya.djvu/११६७

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सं. पु. 2 291 अन्यथा गृह्णतः-- 3 140 2 21 1-45 पुट 3 2 20 अन्यश्च परमो राजन्- मोक्षधर्म अन्या माया पुनः सृष्टा — ? अन्योऽसावन्योऽहमस्मि – बृ. 1-4-10 1 3 62 1 309 2 233 1 269 2 311 1 339 2 195 2 1 1 1 1 2 102 1 50 1 308 1 115 2 20:3 - 2 204 अभेदिनो निर्विकृतेः – सं. शा, 2 204 2 330 अभ्युपगम्य चेदं - शं. भा. 2-1-14 अमृत्युं कर्मणा केचित् - भार उद्योग. 42-3 307 अम्यवसात इन्द्र - ऋ. सं. 2-4-8 1 1 180 अयं पटः एतत्तन्तु - चित्सुखी 1-12 श्लो. 294 488 98 478 200 269 275 जो. का. 1-5 अन्यथात्वमसत्तस्मात् ? अन्यदा सत्वं तु - खण्डन अन्यो ह्यन्यस्मिन्प्रतिष्ठितः—छा. 7-14-2 अपशवो वा अन्ये - तै. सं. 5-2-9 अपां का गतिः - छा 1-8-5 अपाणिपादोऽहम् – कै. अपागादग्नरग्नित्वं - छा. अपूर्वे चार्थवादः - जै. सू. - अप्रकरणे तु - जै. - सू. 3-4--26 अप्रत्यक्षोपलम्भस्य – धर्मकीर्ति अप्राप्ते शास्त्रमर्थवत् - ? अप्राणो ह्यमनाः --- मु. उ. 2-1-2 अभयं वै जनक – बृ. 4-3-4 -249 अभागि प्रतिषेधात् — जै. अभावप्रत्ययालम्बना - यो. 6-4-1 10-8-5 1-2-5 1-10 अभावात्पुनर्नाचेतनत्वादेव - पञ्चपा 1-1-2 अभिधेयाविनाभूत – तन्त्र 318 अभीष्टसिद्धावपि - ख. 1-137 (27 लो) अभंदिनः सावयवस्य–सं. शा. 2-65 2-66