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पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/५९

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- -- - प्रकरण १ श्लो० २७ -



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_ _ ________ ____ ५१ __ ____ __ _ अन्वित ही होता है। श्रव प्रश्न होता है कि (ते) तुझे (श्रभाव प्रथा ) अभाव रूप कारण की प्रसिद्धि ( केन) किस प्रमाण से हुई है ? भाव यह है कि प्रभाव के साथ इन्द्रिय आदिकों का संबंध असंभव होने से किसी भी प्रत्यक्ष आदि प्रमाण से तुझे अभाव कारण का ज्ञान नहीं हो सकता। दूसरे, सामान्य भावरूप कारण सर्वत्र वर्तमान है, इसलिये (सकलम्) सब ही कार्य ( सर्वतः ) सवत्र (किमिति न स्यात्) क्यों नहीं होगा ? किन्तु सर्व कार्या सर्व से ही होगा जो दृष्ट बाधित है । इतना ही नहीं, अभाव सर्वत्र सुलभ होने से (श्रयत्नम्) विना ही प्रयत्न सें ( सर्वेषाम् अभीष्ट स्यात् ) सब ही लोगों को अपने इष्टकी प्राप्ति हो जावेगी । अर्थ यह है कि अपने २ इष्ट अर्थ की प्राप्ति के लिये किसी प्रकार के यत्नांकी किसी भी प्राणी को श्रावश्यकता नहीं होगी ! इसलिये, हे जड़, ( आत्मघाते ) अपने को नरक प्राप्ति के कारण रूप असत् उपदेश देने में (किमिति प्रवृत्तः भवान्) तू किस प्रयोजन से प्रवृत्त हुआ है ।२६॥ नेकोऽर्थः सप्तधा स्याद्भवति यदि भवेत्साप्तवि ध्यं च तद्वज्जीवाजीवादयोऽथः किमिति च न तथा स्याजगञ्चाव्यवस्थम् । संदेहः स्याद्विरो धादवधृतिरथ ते बंधमोक्षाव्यवस्था सर्वानेका न्त्पवादो गतवसन ततो भाति मत्प्रलापः ॥२७॥ एक घटादि पदार्थ सात प्रकार का नहीं हो सकता, जो होता है तो सप्त विध न्याय भी इटादिक के समान अनेक होगा । जी आजीव श्रादि अनेक पृदार्थ भी सात