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पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/५६

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स्वाराज्य सिद्धिः

] कारणत्व आदि नहीं बन सकता, इन दोषों से विज्ञान वाद नष्ट हुआ ॥२५॥

(मानसिद्धम्) प्रत्यक्षादिक प्रमाण सिद्ध बाह्य घट पट आदिक वस्तु (नापोद्यम्) नहीं है इस प्रकार नहीं कहना परंतु (अर्थावलापे) बाह्यअर्थ के न अंगीकार करन पर (ज्ञानं विविधं कथमिव) नाना प्राकार वाला ज्ञान कैसे हो सकेगा ? भावयहहै कि विषय की विचित्रता से ही ज्ञानमेंििवचित्रता होती है सो भी बाह्य विचित्र विषय के अंगीकार न करने से असंभव हो जावेगो ।

शंका-स्वप्न की तरह वासनाओं की विचित्रता से ज्ञान में विचित्रता भी हो सकती है।

समाधान-(अर्थानां बाधो न दृष्टः) जाग्रत् पदार्थोका बाध नहीं देखा है। भाव यह है जाग्रत् में भी ज्ञान की विचित्रता स्वप्न की तरह वासनाओं से ही है, तो स्वप्न भावों की तरह जाग्रत भावों का भी बाध होगा । और स्वप्न ज्ञान की विचित्रता तो जाग्रत पदार्थो की वासना की विचित्रता से है, न कि स्वप्न पदार्थो की वासना से । वैसे ही जाग्रत ज्ञान की विचित्रता किन यथाथ पदाथ की वासना से है, तो भी तुमको कहना चाहिये। ऐसे कहने पर बाह्य पदार्थो का अंगीकार विना ही इच्छा से प्राप्त होगा और प्रत्यभिज्ञा ज्ञान आदिकों का अभाव भी प्राप्त होगा । क्योंकि स्थायि ज्ञान नहीं है अंग्रंथात् संस्कारों का आश्रय रूप विज्ञानात्मा तुम्हारे मत् में स्थायि नहीं है। स्वप्र पदार्थो की प्रतिभिज्ञा जाग्रत में नहीं है. क्योंकि वहां बाह्य पदार्थ का प्रभाव संमत है। परंतु.यदि बाह्य कोई पदार्थ ही नहीं है तो (बहिरिति पदं प्रसिद्धार्थ न ऋच्छेत्) ‘बहिर’ यह पद किसी