पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/४५

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प्रकरणं १ श्लो० ३

[ ३७ रहेंगे और उत्पत्ति, स्थिति नाश एक ही काल में होंगे । बाहर के उपादान के समान अपेक्षा से जगत् की रचना करेगा तो उसके लिये शरीर इन्द्रिय बुद्धि की भी अपेक्षा होगी, क्योंकि प्रयत्न शरीर की क्रिया । से होता है, इससे ईश्वर सिद्ध करनेवाला अनुमान भी व्यर्थ होगा ॥२०॥
(यदि नित्यम्) यदि नित्य ही (इंशः) ईश्वर (सर्वज्ञ:) सर्वज्ञ और (सर्व लिप्सुः) सर्व की रचना आदि की इच्छा वाला और (सकल कृतियुत: ) सकल यत्न सहित ( स्यात्) होगा तो ( सर्व कार्य' सदा स्यात्) सर्व कार्य सर्वदा काल ही होता रहेगा और ( उद्य भृति लयाश्च ) उत्पत्ति, पालन और नाश (यौग पद्येन ) एक ही काल में ( स्युः) होवेंगे । भाव यह है कि यदि. सर्व विषयक ज्ञान, इच्छा और प्रयत्न ये ईश्वर में नित्य हैं तो सर्व फल पुष्पादिक कार्य सर्वदा ही काल होते रहेंगे, इनका प्रलय कभी भी नहीं होगा और उत्पत्ति पालन तथा नाश भी एक काल में ही होंगे और सांकेतिक नित्यता माननेपर वेदांत सिद्धांत की प्राप्ति होगी । यदि ईश्वर को श्रपने से भिन्न परमाणु आदिक उपादान की अपेक्षा होती है तो (बाह्यो पादानवत्) उन बाह्य परमाणु आदि उपादान की अपेक्षा की तरह (जगदुत्पत्तौ ) जगत् रचना करने में कुलाल श्रादिक दृष्टांतों से ही (तनुकरणधियाम्) शरीर, इन्द्रय, बुद्धि की भी (विश्व सर्गे ) जगत् की उत्पत्ति में विशेषकर अपेक्षा होगी, और शरीर इन्द्रिय आदि वाले ईश्वर को बुरे भले जगन् की रचना क्रिया जन्य पाप पुण्य से सुख दुःख फल भी कुलालादिको की तरह अवश्य ही होगा । ईश्वर की सिद्धि:करने वाला (अनु