पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२२३

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प्रकरण ३ श्लो० २ [ २१५ • • • •_ ___ _ _____ _ __ _ ___ _ ______ _ _ _ ___ _ _ ____ _ _ _ उस ब्राह्मण ने देखा कि ये तो दस के दस ही हैं! तब पथिक ने कह, रुदन मत करो दसवां विद्यमान है । तब उनके धैर्य हुआ । उन्होंने पूछा कि ‘भगवन् दसवां कहाँ देखा है पथिक ने एक से कहा. कि तुम इनकी गिनती करो, तब उसने नौ तो गिने परन्तु अपने को नहीं गिना तब उस पथिक ने उससे कहा दसवां तू है तब उसने इस शब्द से अपने को प्रत्यक्ष जान लिया । यही बात श्रात्मा के अपरोक्त ज्ञान में होती है क्योंकि वह तू हैं ऐसे सत्गुरु के उपदेश का विषय भी अपरोक्ष ही है।॥१॥ अब पूर्व उक्त दृष्टांत का ही उपपादन किया जाता है वस्तुभजते परोचताम् । न खलु प्रदीप तरणि प्रकाशयोः प्रतिभासतोऽस्ति विषये पृथग स्वभाव से ही अपरोक्ष वस्तु शब्दजन्य ज्ञान के विषय होने से परोक्ष नहीं होती, क्योंकि दीपक और सूर्य के प्रकाश के विषय घटादिक में प्रकाश के भेद से किसी प्रकार भेद नहीं है ॥२॥ ( स्वतोपि अपरोक्षवस्तु शब्दजन्य' मतेि मात्रतः परोक्षतां न मजते) स्वभाव से ही अपरोचत् प्रत्गात्मा वस्तु शब्द जन्य ज्ञान के विपयत्व रूप अपराध से परोक्षता को नहीं सेवन करती । अर्थात् स्वभाव से ही अपरोक्ष वस्तु परोक्त नहीं