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पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२०

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१२ ] स्वाराज्य सिद्धि मंत्र, औषधादि कर्म से क्या निवृत्ति होता है ? नहीं होता । ऐसा निश्चय करके जैसे सर्प जीर्णत्वचा को त्यागता हें वेसे कर्मबंधन को त्याग कर श्रीगुरु चरणकमल का सेवन और सामीप्य से ज्ञानोपाय में लग ॥७॥ (गुरु श्रीचरणम्) तत्वनिष्ट गुरुओं के श्रीचरंणों को (अभिगतः) संमुखता को प्राप्त होकर (सेवंमानः) सेवन करता हुआ अर्थात् श्रद्धाभक्ति से श्रीगुरुओं के चरणों की सेवा करता हुआ ( ज्ञानोपाये) ज्ञान के साधनरूप श्रवण आदिकों में (यतेत) यत्न करे । (एवम्) उक्त प्रकार का (निश्चित्य ) निश्चय करके अर्थात् श्रारोपित वस्तु अधिष्ठान के ज्ञान से ही नाश होती है इस प्रकार का निश्चय कूरके तथा (विधिना) शास्रोक्त विधि से (कर्म बन्धम्) कर्म बंधन को (विधूय ) स्याग करके, किस प्रकार ? जैसे (नाग: ) सर्प (त्वचम् ) जीर्णत्वचा को अर्थात् पुरानी कांच को त्याग देता है, तैसे ही कर्मबंधन को त्यागे, क्योंकि कल्पितवस्तु की निवृत्ति कम से नहीं होती । इसमें दृष्टांत को स्मरण कराते हैं । (मालोद्भतः) माला में कल्पित (अहिः) सर्प (नमस्कार मंत्रौषधाचैः ) नम स्कार, मंत्रऔषधि, गरुड़ध्यान आदिक उपायों से (अस्तम् ) नाश को (किमुब्रजति) क्या प्राप्त होता है? तैसेही (एषबंधः) यह संसार बंध (वेदनं विना ) अधिष्ठान के सम्यक् ज्ञान के विना (कर्म जालैः) कर्म समूह से(नििवरमति)विनाश को नहीं प्राप्त होता (हि) क्योंकि यह बन्ध (श्राविद्य: ) अविद्या से उत्पन्न हुआ है अर्थात् अज्ञानमूलक है। भाव यह है कि श्रुति स्मृति आदि में जो कहा गया है कि संसार बंध की निवृत्ति ज्ञान ही से होती है; उसकी उपपत्ति संसार बंधको अज्ञानमूलक