पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१७

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प्रकरणं १ श्लो० ३

भूयोवचोभिः । ज्ञतेः साक्षान्मुक्ति हेतुत्व स

द्वावध्यासत्वं बन्धनस्यार्थसिद्धम् ॥५॥

देव को जानकर सर्व बैधन की निवृति होती हैं इसके सिवाय मोक्ष के लिये और कोई मार्ग नहीं है। बंधन अध्यास से सिद्ध है इसीसे बहुत श्रुति वाक्यों सेआत्मा का साक्षात्ज्ञान ही मुक्ति का हेतु है यह सिद्धहोता है।॥५॥

(देवं) सत्य, आनन्द, अभिन्न, प्रकाशरूप और चैतन्य ब्रह्मरूप आत्मा को (ज्ञात्वा) अभेदरूप से साक्षात्कार करके ( सर्व पाशापहानिः) सर्व पाशों का अर्थात् सर्व बंधनों का विनाश होजाता है तथा (नान्यः पंथाश्च ) ज्ञान से भिन्न मुक्ति की प्राप्ति का और कोई भी साधन नहीं है, ज्ञान ही मुक्ति की प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है—‘पंथाश्च' में चकार श्रक्षर इस प्रकार के अर्थवाले यहांपर न कहे हुए श्रुति स्मृति वाक्यों के संग्रह करने के लिये है—(इति) इस अर्थ वाले (भूयो वचोभिः) बहुत ही श्रुतिस्मृति वाक्यों से (ज्ञप्तेः) ब्रह्मात्मैकत्व ज्ञानको (साक्षात्) व्यवधान के बिना ही (मुक्तिहेतुत्वसिद्धौ ) बंधनिवृत्त की कार णता सिद्ध होने पर (बंधनस्य) दुःख का हेतु होने से बंधन रूप जगत् का (अध्यासत्वम्) शूक्ति रजत आदिकों की तरह आरो पित होना (अर्थसिद्धम्) अर्थसे सिद्ध होता है, क्योंकि आरोपित वस्तु की ही लोक में ज्ञान से निवृत्ति देखी है, सत्य वस्तु की नहीं ॥५॥

शंका-जैसे लोक में भेदन, प्रहार श्रादिक क्रिया द्वारा ही भाव पदार्थो का नाश देखा गया है, तैसे ही भावरूप जगत् का नाश भी शास्रविहित पुण्यकर्मो से ही हो सकता है, क्योंकि