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पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/५३

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( चालीस ) के खिलाफ उनके सेनापति मीरजाफर से सन्धिपत्र लिखवाते हैं। मीर कासिम ठसका विरोध करते हैं। युद्ध होता है; मीर कासिम पराजित होता है। नन्दकुमार को अन्याय के साथ फांसी दी जाती है। कांग्रेस का आन्दोलन चलता है। आन्दोलन की विजय होती है और भारत स्वतन्त्र होता है। इस नाटक की रचना सन् १९३६ में हुई थी। तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने उसे जप्त कर लिया था जिसको स्वतन्त्रता के बाद उन्मुक्त किया गया। कम्पनी के हाथ से अंग्रेज सरकार के हाथों में राज्य चले जाने के बाद स्वतन्त्र राज्य भी अंग्रेज सरकार की दस्तंदाजी के सामने पंगु बन गये थे। रेजीडेण्ट ही राज्यों का कर्ताधर्ता था। इस आशय का एक नाटक गोपीनाथ का लिखा माधवस्वातन्त्र्यम् है। जिसमें जयपुर में मंत्री का चुनाव होना है। काफी उखाड़ पछाड़ चल रही है तब विक्टोरिया के हस्तक्षेप से माधव को नियुक्त किया जाता है और ठसे सारे प्रशासनिक अधिकार दे दिये जाते हैं। (३) नव जागृति (रिनेश) - भारत पूर्ण रूप से विदेशी चंगुल में फंसा हुआ था। सबसे पहले बंगाल में ही साम्राज्य का सूत्रपात हुआ था और बंगालियों ने सबसे पहले अंग्रेजी शिक्षा अपनायी थी। अतः बंगाल में ही सबसे पहले नवचेतना का उदय हुआ और उसके सूत्रधार राजाराममोहन राय बने। इस विषय में रमा चौधरी ने एक ‘भारतपथिक' नाटक की रचना की जिसमें राजा साहब द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना, सती प्रथा का उन्मूलन, अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार इत्यादि सामाजिक सुधारों का प्रयत्न किया गया। बह्व- समाज की स्थापना के द्वारा हिन्दू जाति के ठच्च आदर्श और महान शक्ति का परिचय कराया गया। इसी परम्परा में बंगाल में कई महत्व पूर्ण व्यक्तित्वों का आविर्भाव हुआ जिनमें सर्वप्रमुख नाम रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य विवेकानन्द का लिया जा सकता है। इनका व्यापक प्रभाव समस्त भारत पर पड़ा। इनके जीवन और कार्य कलाप पर आधारित कई नाटक लिखे गये जिनमें डा. रमा चौधरी लिखित 'युगजीवनम्’ शीर्षक नाटक उल्लेख्य है जिसमें रामकृष्ण परमहंस के जीवन एवं कार्यकलापों को नाट्य विषय बनाया गया है। डा. रमा चौधरी ने ही रामकृष्ण परमहंस के शिष्य अभेदानन्द के विषय में एक दूसरा नाटक लिखा। यतीन्द्र विमल चौधरी का भारत विवेक शर्षक एक अन्य नाटक प्रकाश में आया है जिसमें स्वामी विवेकानन्द के जीवन और उनके देश विदेश के कार्यकलाप का चित्रण किया गया है । यतीन्द्र विमल चौधरी ने ही रामकृष्ण परमहंस की पत्नी सारदामणि के विषय में दो नाटक लिखे एक रामकृष्ण परमहंस के नव काल में ही 'शक्तिसारदम्’ शीर्षक नाटक और दूसरा रामकृष्ण की मृत्यु के बाद लिखा ‘मुक्ति सारदम्’ शीर्षक नाटक । भारतीय नवोत्थान का प्रभाव बंगाल तक ही सीमित नहीं रहा। पश्चिम में भी समाज सुधार का काम स्वामी दयानन्द ने अपने हाथ में लिया। उनका सन्देश था भारत का सवोतम ज्ञान विज्ञान वेदों से ही उत हुआ है और वेद ही भारत के सभी आचार