पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/६३

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45 सप्तमोऽध्यायः आत्मारामाख्य विप्रस्य सम्पत्प्राप्तिक्रम सूत उवाच :- वाल्मीकिना मुनीन्द्रेण यदुक्त तन्मयापि हि । उत्तं तेनान्यदुक्तं तद्वक्ष्यते श्रूयतां बुधाः ।। १ ।। मध्यदेशे द्विजः कश्चिदात्माराम इति श्रत । महाकुलप्रसूतश्च देवब्राह्मणपूजकः ।। २ । पिता च तस्य प्रथितः पृथिव्यां ब्राह्मणोत्तमः । अत्यन्तं विष्णुभक्तश्च वेदवेदाङ्गपारग : ।। ३ ।। । विप्र आतमा राम की, चिन्ता अरु धन नाश । विष्णु भक्ति कपिलादि दश, तीथ सप्त निवास ।। १ ।। दर्शन सनत कुमार का, धन हित पश्चात्ताप । शान्ति वचन लक्ष्मी कृपा व्यूह लक्ष्मी को जाप ।। २ ।। विनती तुष्टीवर मिलन, प्रभु का अन्तर्धान ।। ३ ।। बहुसभ्यत पाना द्विज,ि भोग अखण्ड अनन्त । इस सप्तम अध्याय में कहा सूत भगवन्त ।। ४ ।। 8 आत्माराम ब्राह्मण की सम्पत्प्राप्ति 8a श्री सूतजी बोले :-मुनीन्द्र श्री वाल्मीकी जी ने जो कहा था उसको हमने भी कहा, अब पुनः उन्होंने जो दूसरी बात कही थी वह फिर मैं कहता हूँ, आप लोग ध्यान देकर सुने-मध्यदेश में कोई आत्माराम नाम का ब्राह्मण रहता था । बह महान कुल में जन्मा था और ब्राह्मण व देवता का अनन्य उपासक था । उसका पिता अत्यन्त विख्यात एवं संसार का सर्वोत्तम ब्राह्मण था और भारी विष्णु-भक्त तथा वेद-वेदान्त का परमज्ञाता था । १-३