पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/५

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ओ तत्सत् । श्रीविष्णुगीता। RT -विज्ञापन । श्रीभारतधर्ममहामण्डल प्रधान कार्यालय काशधिाम के शाखप्रकाश विभाग द्वारा अब तक अप्रकाशित चार गीताओं का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन होकर हिन्दीसाहित्यभण्डार और साथ ही साथ सनातनधर्मग्रन्थभण्डार की श्रीवृद्धि हुई है। इससे पहले श्रीगुरुगीता सब प्रकार के गुरुभक्तों के लिये,श्रीसन्न्यासगीता सब प्रकार के सन्न्यासी और साधुसम्प्रदायों के लिये सौर्यसम्प्रदायके लिये सूर्यगीता और शाक्तसम्प्रदायक लिये शक्तिगीता हिन्दी अनुवादसहित प्रकाशित हो चुकी है। अब यह श्रीविष्णुगीता जो अब तक अप्रकाशित थी, हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित की गई है। सर्वव्यापक, सर्वजीवहितकारी और पृथिवी के सब धर्मों के पितारूप सनातनधर्म में निर्गुण और सगुण उपासनारूपसे प्रधान दो भेद हैं । यद्यपि लीलाविग्रह अर्थात् अवतार उपासना, ऋषिदेवतापितृउपासना और क्षुद्र तामसिक शक्तियों की उपासनारूप से सनातन धर्म में सब अधिकार के उपासकवृन्द के लिये और भी कई उपासनाशैलियों का विस्तारित वर्णन पाया जाता है परन्तु लीलाविग्रह उपासना अर्थात् अवतार-उपासना तो पञ्चसगुणउपासना के अन्तर्गत ही है । श्रीविष्णुभगवान्, श्रीसूर्यभगवान्, श्रीभगवती देवी, श्रीगणेशभगवान् और श्रीसदाशिव भगवान इन पंच सगुणउपास्य देवताओं में से सब के ही अवतारों का वर्णन शाखों में पाया जाता है क्योंकि सगुणउपासना की पूर्णता का लीलामय स्वरूप के विना उपासक अनुभव नहीं कर सकता । अस्तु लीलाविग्रह की उपासना सगुण उपासना की पूर्णता के लिये ही होती है तथा ऋषिदेवपितृउपासना और अन्य क्षुद्र उपासना का अधिकार संकाम राज्य से ही सम्बन्ध रखता हैं। निर्गुण उपासना में सर्वसाधारण का अधिकार हो ही नहीं सकता। निर्गुण उपासना. अरूप, भावातीत, वाक्,मन और बुद्धि से अगोचर आत्मस्वरूप की उपासना है । निर्गुण उपासना केवल आत्मज्ञान-प्राप्त तत्वज्ञानी महापुरुषों तथा जीवन्मुक्त संन्यासियों के लिये ही उपयोगी समझी जा सकती है और केवल सगुण उपासना ही सब श्रेणी के उत्तम उपासकवृन्द के लिये हितकारी समझकर पूज्यपाद महर्षियों ने उसके सिद्धान्तों का अधिक प्रचार शास्त्रों में किया है । सृष्टि के स्वाभाविक पञ्चतत्वों के अनुसार पञ्चविभागों पर संयम करके पञ्चउपासक सम्प्रदाय के भेद कल्पना करते हुए पूर्वाचार्यों ने पञ्चसगुणउपासनाप्रणाली प्रचलित की है। विष्णुउपासक के लिये वैष्णवसम्प्रदायप्रणाली, सूर्यउपासक के लिये सौर्यसम्प्रदायप्रणाली, शक्तिउपासक के लिये शाक्तसम्प्रदायप्रणाली, गणपतिउपासक के लिये गाणपत्यसम्प्रदायप्रणाली और शिवउपासक के लिये शैवसम्प्रदायप्रणाली उन्होंने विस्तारित रूप से नाना शास्त्रों में वर्णन की है। प्रत्येक उपासक सम्प्रदाय के उपयोगी अनेक आर्यसहिताएँ और