पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/११

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विषयानुक्रमणिका । विषय

पृष्ठाङ्क और उनके परे भगवद्भावकी स्थिति, त्रिगुणातीत होनेसे . मुक्ति ... ... ... ...

४२-४४ (३) गुणातीतका लक्षण, यज्ञका लक्षण, त्रिगुणभेदसे 'दान' 'तपः 'कर्म' 'कर्ता'-'भक्ति' 'भक्त' 'उपासक ज्ञान, 'यज्ञ' 'बुद्धि, 'धृति' 'प्रतिभा' और श्रद्धाके त्रिविध लक्षण...४५-५४ (४) भयानक रोचक और यथार्थ वचन और उसके अधिकारी, त्रिविधभाषा, उनके लक्षण और उनके अधिकारी ... ... ... ... ... .......... ५४-५६ (५) पुरुषार्थ-त्रितय और उसके त्रिगुणसम्बन्धसे त्रिविध लक्षण, त्रिगुणसम्बन्धसे 'आहार' 'सुख' और 'त्याग' के त्रिविध लक्षण..... .... ... ५६-५८ (६) त्रिगुणका सर्वजगद्व्यापकत्व, गुणातीत होनेका आदेश, गुणकर्मविभागसे चातुर्वर्ण्यकी सृष्टि, गुणमय भावोंसे मोहित होनेसे भगवान्की विस्मृति, भगवानके शरणागत होनेसे गुणमयी मायासे निस्तार ... ... ५६-६०

देवताओंकी जिज्ञासा ।  (७) त्रिगुणदर्शनकी शक्ति और जिसके द्वारा सदाEि भगवत्प्राप्ति हो उस ज्ञानकी जिज्ञासा ..

महाविष्णुकी आज्ञा। (८) त्रिगुणके द्वारा सृष्टिस्थितिलय और त्रिभावके द्वारा उनका ज्ञान, विद्या और अविद्याका कार्य. कामका स्वरूप और उसके दमनका उपाय, इन्द्रिय मन बद्धि और आत्माका उत्तरोत्तर श्रेष्ठत्व, भगवानका स्वरूप, निष्पाप पुण्यात्माओंकी भगवान्में भक्ति और उससे अध्यात्मादि भगवत्स्वरूपोंका ज्ञान ........." " ... ... ६०-६३ देवताओंकी जिज्ञासा। (६) ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और ... अधियक्षविषयक और मरण कालमें भगवद्विषयक ज्ञान प्राप्त होने के उपायकी जिज्ञासा..... ... ६३-६४