पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
३० | यज्ञसंरक्षणम् | .... .... २५९ |
३१ | मिथिलाप्रस्थानम् | .... .... २६४ |
३२ | कुशनाभकन्योपाख्यानम् | .... .... २६९ |
३३ | कुशनाभकन्यापरिणयः | .... .... २७४ |
३४ | विश्वामित्रवंशवर्णनम् | .... .... २८१ |
श्लोकसङ्ख्या | ३० | ||
४४ | ततस्तु कौशिकस्तत्र यज्ञं कर्तुमुपाक्रमत् । | .... | २६१ |
तद्विघ्नकारिणो रामः राक्षसान् संजघान ह ॥ | .... | २६३ | |
३१ | |||
४५ | ततस्ताभ्यां प्रतस्थे सः कौशिको मिथिलां प्रति । | .... | २६५ |
५२ | ते गत्वा दूरमध्वानं शोणाकूलमवाप्नुवन् । | .... | २६७ |
३२ | |||
४६ | कुशनाभसुतोपाख्यां तत्रोवाच महामुनिः । | .... | २६९ |
यथा च वायुना कन्याः कुशनाभस्य पीडिताः ॥ | .... | २७१ | |
४७ | शीलं स्वकीयं रक्षन्त्यो न बिभ्युरमरादपि । | .... | २७३ |
३३ | |||
शशंस कुशनाभस्तु तासां शीलं क्षमामपि ॥ | .... | २७५ | |
४८ | ताः सुता ब्रह्मदत्ताय कुशनाभो मुदा ददौ । | .... | २७७ |
स्पृष्टास्ता ब्रह्मदत्तेन बभूवुर्विगतज्वराः ॥ | .... | २७९ | |
३४ | |||
४९ | ततः स्ववंशचरितं विश्वामित्रोऽब्रवीत्तदा । | .... | २८१ |
भगिन्याः कौशिकीनाम्म्याः सरितश्चाब्रवीत् कथाम् ॥ | .... | २८३ | |
५० | एवं श्रुत्वा कथास्ते तु मुनिं साध्वित्यपूजयन् । | .... | २८५ |