पुटमेतत् सुपुष्टितम्
२५
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
४४ | सुमित्राश्वासनम् | .... .... ४१३ |
४५ | पौरयाचनम् | .... .... ४२४ |
४६ | पौरमोहनम् | .... .... ४३३ |
४७ | पौरनिवृत्तिः | .... .... ४४१ |
श्लोकसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | |
४४ | ||
विलपन्तीं तथा तां तु सुमित्रा वाक्यमब्रवीत् ॥ | ....४१७ | |
१०५ | न शोच्यो रामचन्द्रस्ते धर्मात्मा सत्यसङ्गरः । | ....४१९ |
देवानामपि देवो यः स तु शोच्यः कथं तव ॥ | .... ४२१ | |
१०६ | इत्यादि तद्वचः श्रुत्वा कौसल्या निर्वृतिं ययौ । | ....४२३ |
४५ | ||
वनं व्रजन्तं तं रामं अन्वगच्छंस्तु नागराः ॥ | .... ४२५ | |
१०७ | प्रीत्या तु रामं ते सर्वे प्रत्यागन्तुं ययाचिरे | .... ४२७ |
रामस्तु तान् पुरं गन्तुं अवदत् स्निग्धया गिरा ॥ | .... ४२९ | |
१०८ | एवं पौरैर्वृतो रामः तमसातीरमाययौ । | .... ४३१ |
४६ | ||
तत्र तां न्यवसन् रात्रिं सर्वे ते तमसातटे ॥ | ....४३३ | |
१०९ | ऐच्छत् सौमित्रिसीताभ्यां गन्तुं रहसि राघवः । | .... ४३५ |
सज्जीकृत्य रथं शीघ्रं प्रतस्थुस्त रहस्तदा ॥ | ....४३७ | |
११० | अतिसन्धाय तान् रामः ताभ्यां दूरं ययौ द्रुतम् ॥ | .... ४३९ |
४७ | ||
प्रभावायां तु शर्वर्यां नापश्यन् राघवं जनाः ॥ | ....४४१ | |
१०४ | निन्दन्तो बहुधाऽऽत्मानः दीनाः प्रत्यागमन् पुरीम् । | .... ४४३ |