पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९९

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) ८० अमोघा विन्ध्यनिलया विक्रान्ता गणनायिका । देखीनामविकाराणि इत्येतानि यथाक्रमम् ॥६३ भद्रकाल्यास्तवोक्तनि देव्या नामनि तत्त्वतः । ये पठन्ति नरास्तेषां विद्यते न पराभवः ६४ अरण्ये प्रान्तरे वाऽपि पुरे वाऽपि गृहेऽपि वा । रक्षामेतां प्रयुञ्जीत जले वाऽपि स्थलेऽपि वा ॥e५ व्यामकुम्भीरचौरेभ्यो भूतस्थाने विशेषतः । अधिष्वपि च सर्वासु चैg)देव्या नामानि कीर्तयेत् ॥e६ अर्भकग्रहश्नतैश्च पूतनामातृभिः सह । अस्यदनां बालानां रक्षामेतां प्रयोजयेत् ६७ महादेवी कुले हे तु प्रज्ञा श्रीश्च प्रकीर्यते । अस्यां देवीसहस्राणि यैव्याप्तमखिलं जगत् |te८ साऽसृजवसायं तु धर्मे भूतसुखावहम् । संकल्पं चैव कल्पादौ जज्ञिरेऽव्यक्तयोनितः && मानसश्च रुचिर्नाम विज्ञेयो ब्रह्मणः सुतः। प्राणास्वादसृजद्दक्षु चक्षुभ्यं च मरीचिनम् १०० भृगुस्तु हृदयाज्जज्ञे ऋषिः सलिलजन्मनः । शिरसोऽङ्गिरसं चैव श्रोत्रादत्रिस्तथैव च ॥१०१ पुलस्त्यं च तथोदानव्यानाच्व पुलहं पुनः । समानजं वशिष्ठं तु अपानान्निर्ममे ऋतुम् ।।१०२ अभिमानात्मकं भद्रे निर्ममे नोललोहितम् । इत्येते ब्रह्मणः पुत्राः प्रणजा द्वादश स्मृताः ॥१०३ इत्येते मानसाः पुत्रा विज्ञेया ब्रह्मणः सुताः। भृग्वादयस्तु ये सृष्टा नवैते ब्रह्मवादिनः १०४ गृहमेधिनः पुराणास्ते धसंस्तः प्राक्प्रततः । द्वादशैते प्रवर्तन्ते सह रुद्रण वै प्रजाः ॥१०५ ऋभुः सनत्कुमारस्तु द्वावेतावूर्ध्वरेतसौ । पूर्वोत्पन्नौ पुरा तेम्यः सर्वेषामपि पूर्वजौ t१०६ दैत्यहनी, माया, महिपमदनी, अमोघा, विन्ध्यनिलया, विक्रान्ता और गणनायिका । ये समस्त यथाक्रम से उस देवी के नाम भेद है ।8०-६३। यह देवियों का नाम भद्रकालोका स्तच है । जो आदमी इसे पढ़ते है, उनका पराभव नही होता ।९४। जंगल, प्रान्तर, नगर, गृह, जल और स्थल मे, बाघ कुम्भीरचौरादि द्वारा आक्रान्त होने पर एवं जितने भी मानस दुःख के अवसर है उनमे देवी के इन नामो का कीर्तन और रक्षार्थं प्रयोग करे ।e५- ६। वालग्रहभूत, पूतना, और मातृकादि कृत अनिष्ट होने पर वलको के लिए इस रक्षा प्रयोग (कवच) को करे । प्रजा और श्री उस महादेवी की मूल मूर्तियाँ है । इन दोनो मूर्तियों से हजार मूतियाँ समुद्भूत हुई है, जिन्होने सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर लिया है k७-६८ उस देवी ने कल्पादि काल प्रारम्भ , भूत-सुखकर धर्म और सकल्प का सृजन किया है । अव्यक्त योनि ब्रह्मा के में व्यवसाय के मन से रुचि नामक पुत्र जनमा एवं प्राण से दक्ष, चक्षुर्हय से मरीचि, हृदय से भूगु, मस्तक से अङ्गिरा, कान से अत्रि, उदन से पुलस्त्य, ध्यान से पुलहसमान से वशिष्ठ, आदान से ऋतु एवं अभिमान से नील लोहित रुद्र उत्पन्न हुए । ये बारहों पुत्र ब्रह्मा के प्राण से उत्पन्न हुए है, ये ही ब्रह्मा के मानस पुत्र कहे जाते हैं । भृगु आदि नो पुत्र जो सृष्ट हुए वे ब्रह्मवादी है ।९९-१०४ये प्राचीन गृहस्थ हैं और इन्होंने ही पहले धर्म का प्रवर्तन किया है । रुद्र के साथ ये वारहों प्रजा का प्रवर्तन करने वाले है ।१०५। ऋभु और सनकुमार सबसे पहले उत्पन्न हुए है और दोनों ही कवरेता है ।१०६। प्रथम कल्प के अवसान में लोकहित