पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९६८

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नवनवतितमोऽध्यायः कैवर्ताभीरशबरा ये चान्ये म्लेच्छजातयः | वर्षाग्रतः प्रवक्ष्यामि नामतश्चैव तान्नृपान् अधिसामकृष्णः सोऽयं सांप्रतं पौरवान्नृपः | तस्यान्ववाये वक्ष्यामि भविष्ये तावतो नृपान् अधिसामकृष्णपुत्रो निर्वक्त्रो भविता किल | गङ्गयाऽपहृते तस्मिन्नगरे नागसाह्वये ॥ त्यक्त्वा च तं सवासं च कौशाम्ब्यां स निवत्स्यति भविष्यदुष्णस्तत्पुत्र उष्णाच्चित्ररथः स्मृतः । शुचिद्रथश्चित्ररथाद्धृतिमांश्च शुचिद्रथात् सुषेणो वै महावीर्यो भविष्यति महायशाः । तस्मात्सुषेणाद्भविता सुतीर्थो नाम पार्थिवः रुचः सुतीर्थाद्भविता त्रिचक्षो भविता ततः । त्रिचक्षस्य तु दायादो भविता वै सुखी बलः सुखोबलसुतश्चापि भाव्यो राजा परिप्लुतः | परिप्लुसुतश्चापि भविता सुनयो नृपः मेधावी सुनयस्याथ भविष्यति नराधिपः । मेधाविनः सुतश्चापि दण्डपाणिर्भविष्यति दण्डपार्णेनरामित्रो निरामित्राच्च क्षेमकः । पञ्चवशनृपा होते भविष्याः पूर्ववंशजाः अत्रानुवंशश्लोकोऽयं गीतो विप्रैः पुराविदः । ब्रह्मक्षन्त्रस्य यो योनिर्वंशो देवर्षिसत्कृतः ६४७ ॥२६६ ॥२७० ॥२७१ ॥२७२ ॥२७३ ॥२७४ ॥२७५ ॥२७६ ॥२७७ ॥२७८ तथा उस समय में जो राजा लोग होंगे, उनके नाम एवं शासनकाल का भी वर्णन करूंगा |२६६-२६९| सम्प्रति अधिसामकृष्ण नामक राजा राज्य कर रहा है, उसको उत्पत्ति विख्यात पौरव वंश से है, उसके वंश में उत्पन्न होनेवाले भविष्यत्कालीन राजाओं का वर्णन सर्वप्रथम कर रहा हूँ । इस राजा अघिसामकृष्ण का पुत्र निर्वक्त्र होगा, गंगा द्वारा हस्तिनापुर (?) के डुवा देने पर वह उसे छोड़ कर अपनी राजधानी कौशाम्बी में बनायेगा, और वहीं पर निवास करेगा ।२७०-२७१। राजा निर्ववत्र को उष्णनामक एक पुत्र होगा | उष्ण से चित्ररथ नामक पुत्र की उत्पत्ति होगी | चित्ररथ से शुचिद्रथ को उत्पत्ति होगी । शुचिद्रथ से परम धैर्यशाली, महान् यशस्वी एवं बलशाली सुषेण की उत्पत्ति होगी। उस राजा सुषेण से सुतीर्थ नामक राजा का जन्म होगा । सुतीथं से रुच होगा, रुच से त्रिचक्ष होगा, त्रिचक्ष का उत्तराधिकारी राजा सुखीवल होगा ।२७२-२७४१ सुखीवल का पुत्र राजा परिप्लुत होगा, परिप्लुत का पुत्र राजा सुनय होगा। सुनय का पुत्र नरपति मेधावी होगा, मेघावी का पुत्र दण्डपाणि होगा | दण्डपाणि से निरामित्र और निरामित्र से क्षेमक होगा। ये पच्चीस नृपतिगण भविष्यत्काल में इस वंश में उत्पन्न होंगे |२७५-२७७१ प्राचीन कथाओं के जाननेवाले ब्राह्मण लोग इस वंश के विषय में एक श्लोक का गान करते हैं । उसका तत्पर्य बतला रहा हूँ, जो वंश ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों का उत्पत्ति स्थान था, जिस वंश का देवता तथा ऋषिगण सत्कार करते थे, वह पौरववंश कलियुग में क्षेमक नामक राजा के बाद १. मत्स्यपुराण में इनका नाम विवक्षु रखा गया है ।