पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८९९

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वायुपुराणम् भोतोऽहं कंसतस्तात एतदेव नवोम्यहम् । मम पुत्रा हतास्तेन ज्येष्ठास्तेऽद्भुतदर्शनाः वसुदेववचः श्रुत्वा रूपं संहृतवान्प्रभुः । अनुज्ञातः पिता त्वेनं नन्दगोपगृहं गतः ॥ उग्रसेनमते तिष्ठन्यशोदायै तदा ददौ ८७८ ॥२०५ ।।२०६ ।२०७ ॥२०८ ॥२०६ तुल्यकालं तु गर्भिण्यौ यशोदा देवकी तथा । यशोदा नन्दगोपस्य पत्नी सा नन्दगोपतेः यामेव रजनों कृष्णो जज्ञे वृष्णिकुलप्रभुः । तामेव रजनी कन्यां यशोदाऽपि व्यजायत तं जातं रक्षमाणस्तु वसुदेवो महायज्ञः । प्रादात्पुत्रं यशोदायै कन्यां तु जगृहे स्वयम् दत्त्वैनं नन्दगोपस्य रक्ष मामिति चाब्रवीत् । सुतस्ते सर्वकल्याणो यादवानां भविष्यति ॥ अयं स गर्भो देवक्या अस्मत्वलेशान्हनिष्यति ॥२१० उग्रसेनात्मजे तां च कन्यामानकदुन्दुभिः । निवेदयामास तदा कन्येति शुभलक्षणा ।२११ + स्वसायां तनयां कंसो जातां नैवावधारयत् । अथ तामपि दुष्टात्मा ह्य त्ससर्ज मुदाऽन्वितः ॥ २१२ हता वै या यदा कन्या जपत्येष वृथामतिः | कन्या सा ववृधे तत्र वृष्णिसद्मनि पूजिता ॥२१३ ! निवेदन किया कि हे प्रभो ! आप अपने इस रूप को समाप्त कीजिये । हे तात ! मैं कंस से बहुत भीत हूँ - यही इतना निवेदन आप से कर रहा हूँ, मेरे ज्येष्ठ पुत्रों को जो देखने मे अद्भुत सौन्दर्यशाली थे, उसने मार डाला है | २०२-२०५१ वसुदेव की ऐसी बातें सुनकर महामहिमामय भगवान् ने अपने दिव्यस्वरूप को समेट लिया। पिता वसुदेव जी ने भगवान् की आज्ञा से उन्हे नन्दगोप के घर पहुंचाकर उग्रसेन को सम्मति से यशोदा की गोद में दे दिया । उस समय संयोगतः देवकी और यशोदा— दोनों गर्भवती थी, यशोदा मन्दगोप की पत्नी थी। जिस रात्रि को वृष्णिकुलोद्धारक भगवान् कृष्ण प्रादुर्भूत हुए थे उसी रात में यशोदा ने भी एक कन्या को जन्म दिया था। महान् यशस्वो वसुदेव जो पुत्र रूप भगवान् को भली भाँति गोदी में छिपाकर यशोदा को दे आये और उनकी कन्या को अपने घर उठा लाये ।२०६ २०८ नन्दगोप को भगवान् कृष्ण को समर्पित कर वसुदेव ने कहा कि आप मेरी रक्षा करें, तुम्हारा यह पुत्र सब का कल्याण करनेवाला है एवं यदुवंशियों का उद्धारक होगा, यह देवकी का वह चिरवभिलपित गर्भ है, जो हम लोगों के समस्त फ्लेशों को दूर करेगा। इस प्रकार नन्दगोप के गृह से लौटकर आनकदुन्दुभि वसुदेव जी ने उग्रसेन के पुत्र कंस के हाथों में अर्पित करते हुए कहा कि यही शुभ लक्षण सम्पन्न कन्या उत्पन्न हुई है। अपनी बहन देवकी में कन्या की उत्पत्ति सुनकर दुष्टात्मा कंस ने कुछ भी ध्यान नही दिया, और अत्यन्त प्रसन्न होकर उसे भी छोड़ दिया। वह मूढ़ यह कहने लगा कि यदि कन्या ही उत्पन्न हुई है तो उसे मरी ही समझना चाहिये ।२०६ - २१२२३ । इस प्रकार कंस द्वारा छोड़ दिये जाने पर वह कन्या वृष्णिगृह में सत्कार पूर्वक + अयं प्रयोगाश्चाऽऽर्षः ।