पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८९७

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८७६ वायुपुराणम् आजायत श्राद्धदेवो निषधादिर्यतः श्रुतः । एकलव्यो महावीर्यो निषादैः परिवर्धितः गण्डूषायानपत्याय कृष्णस्तुष्टोऽददात्सुतौ । चारुदेष्णं च साम्वं च कृतास्त्रौ शस्तलक्षणो तन्तिजस्तन्तिमालश्च स्वपुत्रौ कनकस्य तु | वस्तावनेस्त्वपुत्राय यमुदेवः प्रतापवान् ॥ सौतिर्ददौ सुतं वीरं शौरि कौशिकमेव च ॥१८ तपाश्च फोधनुश्चैव विरजाः श्यामसृञ्जिमौ | अनपत्योऽभवच्छ्यामः श्यामकस्तु वनं ययौ ॥ जुगुप्समानो भोजत्वं राजपत्वमदाप्नुयात् + य इदं जन्म कृष्णस्य पठेत नियतव्रतः | श्रावयेद्ब्राह्मणश्चापि सुमहत्सुखमाप्नुयात् देवदेवो महातेजाः पूर्वं कृष्णः प्रजापतिः | विहारार्थ मनुष्येषु जज्ञे नारायणः प्रभुः देवक्यां वसुदेवेन तपसा पुष्करेक्षणः । चतुर्बाहुस्तु संजज्ञे दिव्यरूपः श्रियान्वितः प्रकाशो भगवान्योगो कृष्णो मानुषमागतः । अव्यक्तो व्यक्तलिङ्गस्थः स एव भगवान्प्रभुः नारायणो यतश्चक्रे प्रभवं चाव्ययो हि सः । देवो नारायणीभूत्वा हरिरासीत्सनातनः ॥१८७ ||१८८ ।।१६० ॥१६१ ॥१६२ ॥१६३ ॥१६४ ॥१६५ महाबलशाली एकलव्ग के नाम से भी विख्यात हुए। भगवान् कृष्ण ने प्रसन्न होकर सन्ततिहीन गण्डप को चारुदेष्ण और साम्ब नामक दो पुत्र प्रदान किये थे, जो शस्त्रास्त्रवेत्ता और प्रसंशनीय गुणोंवाले घे| कनक के तन्तिज और तन्तिमाल नामक दो पुत्र थे, प्रतापशाली वसुदेव ने इन दोनो पुत्रों को पुत्रविहीन वास्तावनि के हाथों समर्पित किया, सौति ने वीरपुत्र शौरि और कौशिक को उसे समर्पित किया था |१८४-१८९ उसी वंदा में तपा, क्रोधनु विरजा, श्याम और सृजिम नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे, इनमे से श्याम को कोई सन्तान नहीं थी, जिससे वह वन को चला गया था । वह भोजत्व को निन्दा करता था, उसे राजपि की उपाधि प्राप्त हुई थी । जो ब्राह्मण नियमपूर्वक भगवान् कृष्ण के इस जन्मवृत्तान्त को दूसरे को सुनाता है अथवा पढता है, वह महान् सुख की प्राप्ति करता है । प्रजापति, महान् तेजस्वी देवदेव प्रभु भगवान् नारायण विहार करने के लिये मनुष्य योनि में कृष्ण के रूप में अवतरित होते हैं। वे कमलनेत्र, दिव्यस्वरूप चतुर्भुज भगवान् अपनी समस्त कान्ति से समन्वित होकर वमुदेव की परम तपस्या के फलस्वरूप देवकी के गभं में उत्पन्न होते है ।१९०-१६३। वे परम प्रकाशमान भगवान् ही योगेश्वर कृष्ण रूप में प्रादुर्भूत होते है, वे परम प्रभु भगवान् अव्यक्त स्वरूपवाले निराधार एवं व्यक्त स्वरूपवाले साकार- दोनों ही हैं । वे नारायण भगवान् कृष्ण अव्ययात्मा एवं समस्त चराचर सृष्टि के विधायक हैं। ये हो नारायण रूप में

  • वस्तावनेरिति संप्रदानार्थं पष्ठी | + नायं इलोको घ. पुस्तके |