पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८९३

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८७२ वायुपुराण अस्मक्यां जनयामास शूरो वै देवमोदुषम् | माण्यां तु जनयामास शूरो वै देवमाहुषम् भाष्यां तु जक्षिरे शूराद्भोजायां पुरुषा दश । वासुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः जज्ञे तस्य प्रसूतस्य दुन्दुभिः प्राणदद्दिवि । आनकानां च संह्लादः सुमहानभवद्दिवि पपात पुष्पवर्षं च शूरस्य भवने महत् । मनुष्यलोके कृत्स्नेऽपि रूपे नास्ति समो भुवि यस्थाऽऽसीत्पुरुषाग्रयस्य कीर्तिश्चन्द्रमसो यथा । वेदभागस्ततो जज्ञे ततो देवश्रवाः पुनः अनादृिष्टिकडश्चैव नन्वनश्चैव भृञ्जिनः । श्यामः शमीको गण्डूषश्चत्वारस्तु वराङ्गनाः पृथा च श्रुतवेदा च श्रुतकीर्तिः श्रुतश्रवा । राजाधिदेवी च तथा पञ्चैता वीरमातरः पृथां दुहितरं चक्रे कुन्तिस्तां पाण्डुरावहत् । अनपत्याय वृद्धाय कुन्तिभोजाय तां ददौ तस्मात्कुन्तीति विख्याता कुन्तिभोजात्मजा तथा । कुरुवीरः पाण्डुमुख्यस्तस्माद्भार्यामविन्दत ॥ पृथा जज्ञे ततः पुत्रांस्त्रीनग्निसमतेजसः । लोकेऽप्रतिरथान्वीराञ्शक्रतुल्यपराक्रमान् धर्माद्युधिष्ठिरं पुत्रं मारुताच्च वृकोदरम् | इन्द्राद्धनंजयं चैव पृथा पुत्रानजीजनत् ' ॥१४३ ॥ १४४ ॥१४५ ॥१४६ ॥१४७ ॥१४८ ॥१४६ ।।१५० ॥१५२ ॥१५३ की उत्पत्ति हुई | भोजपुत्री भाषी ने उन्ही शूर के सयोग से दस पुरुषों ( पुत्रों) को जन्म दिया। इनमें वसुदेव महाबलशाली थे, इनकी ख्याति पूर्वकाल मे आनकदुन्दुभि नाम से थी। जिस समय उनका जन्म हुआ था उस समय आकाश में दुन्दुभि ओर मृदंग को अति मनोहर गम्भीर ध्वनि होने लगी थी, लूर के राजभवन में आकाश से पुष्पो की वर्षा होने लगी थी । सम्पूर्ण मर्त्यलोक में वासुदेव के समान रूपवान कोई दूसरा नहीं था । उस पुरुषरत्न वसुदेव की कोति चन्द्रमा की चांदनी की भाँति लोकमनोरंजनो तथा विशद थी । वासुदेव के उपरान्त सूर के देव भाग नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे। उनके बाद देवश्रवा नामक पुत्र का जन्म हुआ था। इनके अतिरिक्त अनादृष्टि, कड, नन्दन, भृज्जिन, श्याम, शमीक, और गण्डूष नामक पुत्र थे । चार सुन्दरी कन्याएँ थी ।१४३-१४८। जिनके नाम पृथा, श्रुतवेदा, श्रुतकीति और श्रुतश्रवा थे, इनके अतिरिक्त राजाधिदेवी नामक कन्या भी थी । ये पाँचों कन्याएँ वीर पुत्रों को माताएँ थी । कुन्ति ने पृथा को अपनी कन्या बनाया था, और उसका पणिग्रहण पाण्डु ने किया था। निस्संतान राजा कुन्तिभोज को पिता ने पृथा को दे दिया था। कुन्तिभोज की पोषित पुत्री होने के कारण वह कुन्ती नाम से विख्यात हुई | कुरुवशियों में वीर पाण्डु ने कुन्ती को स्त्री रूप में वरण किया था। पृथा ने उन पाण्डु के संयोग से अग्नि के समान परम तेजस्वी तीन पुत्रों को उत्पन्न किया था । उन तीन पुत्रों को बराबरी करनेवाला कोई महारथी पृथ्वी में नहीं था, वे इन्द्र के समान महान् पराक्रमशाली एवं वीर थे । पृथा ने धर्म के अंश से युधिष्ठिर नामक पुत्र को, मारुत के अंश से वृकोदरा ( भोम) नामक पुत्र को तथा इन्द्र के अंश से धनञ्जय (अर्जुन) नामक पुत्र को उत्पन्न किया था। अश्विनीकुमारों के अंश से माद्रवती में नकुल और सहदेव ने