पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८५५

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८३४ वायुपुराणम् तेन ते मरुतस्तस्य मरुत्सोमेन तोषिताः । अक्षय्यानं ददुः प्रीताः सर्वकामपरिच्छदम् अन्नं तस्य सकृत्पक्व महोरात्रे न क्षोयते । केटिशो दीयमानं च सूर्यस्योदयनादपि मित्रज्योतिस्तु कन्यायां मरुत्तस्य च धीमतः । तस्माज्जाता महासत्त्वा धर्मज्ञा मोक्षदर्शिनः संन्यस्य गृहधर्माणि वैराग्यं समुपस्थिताः । यतिधर्ममवाप्येह ब्रह्मभूयाय ते गताः अनपायस्ततो जातस्तदा धर्मप्रदत्तवान् ( ? ) । क्षत्रधर्मस्ततो जातः प्रतिपक्षो महातपाः प्रतिपक्षसुतश्चापि संजयो नाम विश्रुतः । संजयस्य जयः पुत्रो विजयस्तस्य जग्मिवान् विजयस्य जयः पुत्रस्तस्य हर्यद्वतः स्मृतः । हर्यद्वतस्ततो राजा सहदेवः प्रतापवान् सहदेवस्य धर्मात्मा अदीन इति विश्रुतः । अदीनस्य जयत्सेनस्तस्य पुत्रोऽथ संकृतिः संस्कृतेरपि धर्मात्मा कृतधर्मा महायशाः । इत्येते क्षत्रधर्माणो नहुषस्य निबोधत नहुषस्य तु दायादाः षडिन्द्रोपमतेजसः । उत्पन्नाः पितृकन्यायां विरजायां महौजसः यतिर्यप्रतिः संयातिरायातिः पञ्च तु द्वयः ( ? ) । यतिर्ज्येष्ठस्तु तेषां वै ययातिस्तु ततोऽवरः ॥३ ॥४ 11५ ॥६ ।।७ ॥८ HIE ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ मरुत् एवं सोम का यज्ञ किया था। उसके उम मरुत्सोम यज्ञ से परम प्रसन्न होकर मरुतों ने अक्षय अन्न प्रदान किये, जो सभी मनोरथो को पूर्ण करने वाले थे ।२-३। एक बार का पकाया गया उसका अन्न दिन रात भर में भी नष्ट नही होता था । और सूर्योदय से करोड़ों वार दिये जाने पर भी वह नही चुकता था । परम बुद्धिमान् मरुत्त की कन्या में मित्रज्योति का जन्म हुआ । उससे महान् पराक्रमी मोक्षदर्शी, घर्मज्ञ पुत्रों की उत्पत्ति हुई, जो गृहस्थाश्रम धर्म का परित्याग कर वैराग्य पथ के अनुगामी हुए, और अन्त में संन्यासियों का धर्म अपनाकर ब्रह्मत्व को प्राप्त हुए |४- ६ | तत्पश्चात् अनपाय को उत्पति हुई, जिससे धर्मप्रदत्तवान् (१) को उत्पत्ति हुई, उससे क्षत्रधर्म की उत्पत्ति हुई । क्षत्र धर्म से महान् तपस्वी प्रतिपक्ष की उत्पत्ति हुई । प्रतिपक्ष के पुत्र संजय नाम से विख्यात हुए | संजय के पुत्र जय हुए और जय से विजय नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई । विजय का पुत्र भी जय नाम से विख्यात हुआा, जय का पुत्र हर्यद्वत नाम प्रसिद्ध हुआ | यंद्वत के उपरान्त परम प्रतापशाली राजा सहदेव हुये । सहदेव के पुत्र धर्मात्मा अदीन नाम से प्रसिद्ध हुए मदीन के पुत्र जयत्सेन के पुत्र हुए, जयत्सेन के पुत्र संकृति हुए । संकृत के पुत्र महान् यशस्वी एवं धर्मात्मा राजा कृतधर्मा हुये । ये सब राजा गण क्षत्रिय गुण कर्म स्वभाववाले थे | अब इसके उपरन्त राजा नहुष के वंश का वर्णन सुनिये ॥७-११॥ राजा नहुप के इन्द्र के समान तेजस्वी छः पुत्र उत्पन्न हुए, वे महान् तेजस्वी नहुष पुत्र पितरों को कन्या विरजा में उत्पन्न हुये थे। उनके नाम थे यति, ययाति, संयाति, आयति, पञ्च (?) द्वय (?) । इन सब पुत्रों में यति सबसे बड़े थे, ययाति उनसे छोटे थे । यति ने राजा काकुत्स्थ को कन्या गो को पत्नी