पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३५

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८१४ वायुपुराणम् ॥४३ ॥४४ वृणे नित्यं हि सालोक्यं गन्धर्वाणां महात्मनाम् । तथेत्युक्त्वा वरं वव्रे गन्धर्वाश्च तथाऽस्त्विति ||४२ स्थालीमग्नेः पूरयित्वा गन्धर्वाश्च तमनुवन् । अनेन इष्ट्वा लोकं तं प्राप्स्यसि त्वं नराधिप तमादाय कुमारं तु नगरायोपचक्रमे । निक्षिप्य तमरण्यां च सपुत्रस्तु गृहान्ययो पुनरादाय दृश्याग्निमश्वत्थं तत्र दृष्टवान् | समोपतस्तु तं दृष्ट्वा ह्यश्वत्यं तत्र विस्मितः गन्धर्वेभ्यस्तथाऽऽख्यातुमग्निना गां गतस्तु सः । श्रुत्वा तमर्थमखिलमणि तु समादिशत् अश्वत्थादणि कृत्वा मथित्वाऽग्नि यथाविधि | तेनेष्ट्वा तु सलोकं नः प्राप्स्यसि त्वं नराधिप मथित्वाऽघ्नि त्रिधा कृत्वा ह्ययजत्स नराधिपः । इष्ट्वा यज्ञैर्वहुविधैर्गतस्तेषां सलोकताम् वासाय च स गन्धर्वस्त्रेतायां स महारथः । एकोऽग्निः पूर्वमासोदूँ ऐलस्त्रींस्तानकल्पयत् एवंप्रभावो राजाऽऽसोदैलस्तु द्विजसत्तमाः । देशे पुण्यतमे चैव महषिभिरलं कृते 1 ॥४५ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० याचना कीजिये, आप उनसे मिलकर यह कहिये कि महात्मा गान्धर्वो के लोक में में सर्वदा निवास करने का वरदान चाहता हूँ ।' उर्वशी की इस बात को राजा ने अंगीकार किया और गन्धर्वो से वरदान की याचना की । गन्धर्वों ने राजा को प्रार्थना पर यह कहा कि आप जैसा कह रहे हैं, वैसा ही होगा ।' उन लोगों ने स्थानी को आग से भरकर राजा से कहा, नराधिप ! इसी अग्नि से हवन करने पर तुम्हें उक्त गन्धर्वलोक को प्राप्ति होगी ।४१-४३। तदनन्तर राजा पुरूरवा ने उर्वशी के गर्भ से समुत्पन्न कुमार को लेकर अपने नगर को चलने का उपक्रम किया । और उस अग्नि को भरणि में रखकर पुत्र के समेत अपने घर को प्रस्थान किया। वहाँ आने पर उन्होंने उस अग्नि को देखा और उसे लेने पर अश्वत्य के वृक्ष का भी उन्हें दर्शन हुआ | समीप में स्थित अश्वत्थ के वृक्ष को देखकर राजा को परम विस्मय हुआ। तब उन्होंने गन्धर्वो से इस वृत्तान्त को कहने का इरादा किया । पृथ्वी पर आये हुए राजा पुरुरवा ने इस अग्नि से यज्ञ करने के बारे में जब गन्धर्वो से जिज्ञासा प्रकट की तव उन लोगों ने सव बातें सुन लेने पर अरणि से मस्थन करने का आदेश दिया । उन्होंने कहा—है नराधिप ! इस अश्वत्य वृक्ष से अरणि लेकर विधिवत् मन्थन करने पर जो अग्नि उत्पन्न हो, उसी से हवन करने पर तुम हम लोगों के लोक को प्राप्त करोगे । ४४-४७। गन्धर्वो के कथनानुसार नराधिप पुरूरवा ने अरणि का मन्थन कर अग्नि को तीन भागों में विभक्त कर यज्ञ का अनुष्ठान किया, और अनेक प्रकार के यज्ञों का विधान समाप्त कर गन्धर्वो का लोक प्राप्त किया। वहां निवास के लिये उनसे गन्धर्वो के समान सुविधा प्राप्त की, त्रेता युग में वह राजा पुरुरवा महारथी था, अग्नि पूर्व काल में केवल एक थे, उसने उनका तीन विभाग किया। ऋषिवृन्द ! इला का पुत्र वह राजा पुरूरवा इसी प्रकार का महान् प्रभावशाली एवं योद्धा था । महर्षियों से सुशोभित परम पुण्यप्रद प्रयाग तीर्थ मे वह पृथ्वी पति राज्य करता था, उस मह