पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७४७

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७२६ वायुपुराणम् लोके श्रेष्ठतमं स्वर्ग्यमात्मनश्चापि यत्प्रियम् । सर्वं पितॄणां दातव्यं तेषामेवाक्षयाथिना जाम्बूनदमयं दिव्यं विमानं सूर्यसंनिभम् | दिव्याप्सरोभिः संकीर्णमन्नदो लभते फलम् आच्छादनं तु यो दद्यादहतं श्राद्धकर्मणि । आयुः प्रकाममैश्वर्यं रूपं च लभते सुतम् उपवीतं तु यो दद्याच्छ्राद्धकालेषु धर्मवित् । पानं च सर्वविप्राणां ब्रह्मदानस्य यत्फलम् कृतं विप्रेषु यो दद्याच्छ्राद्धकाले कमण्डलुम् | मधुक्षोरस्रवा धेनुर्दातारमुपतिष्ठति चक्राविद्धं तु यो दद्याच्छ्राद्धकाले कमण्डलुम् | धेनुं स लभते दिव्यां पयोदां काम्यदोहिनीम् पूर्णशय्यां तु यो दद्यात्पुष्पमालाविभूषिताम् । प्रासादो ह्यत्तमो भूत्वा गच्छन्तमनुगच्छति भवनं रत्नसंपूर्ण सशय्यासनभोजनम् । श्राद्धे दत्त्वा यतिभ्यस्तु नाकपृष्ठे स मोदते मुक्तावैर्यवासांसि रत्नानि विविधानि च । वाहनानि च दिव्यानि अयुतान्यर्बुदानि च सुमहज्ज्वलनप्रख्यं रत्नकामसमन्वितम् । सूर्यचन्द्रनिभं दिव्यं विमानं लभतेऽक्षयम् अप्सरोभिः परिवृतं कामगं तु मनोजवम् | वसते स विमानाचे स्तूयमानः समन्ततः ॥२ ॥३ ॥४ ॥५ ॥६ ॥७ ॥८ NIE ॥१० ॥११ ॥१२ प्रिय लगनेवाले पदार्थों को अक्षय तृप्ति के लिये उन पितरों को देना चाहिये |१-२ श्राद्धादि मे अन्न का दान करनेवाला मनुष्य सुवर्ण के बने हुए, सूर्य के समान चमकते हुए, दिव्य सौन्दर्यशालिनी अप्सराओं से भरे हुए दिव्य विमान को प्राप्त करता है |३| जो मनुष्य श्राद्धकर्म में विना फटा हुआ ओढ़ने का वस्त्र प्रदान करता है, वह दीर्वायु, ऐश्वर्य सुन्दरता तथा पुत्र की प्राप्ति करता है |४| जो धर्मात्मा मनुष्य श्राद्धकर्म में यज्ञोपवीत का दान करता है तथा सभी समागत ब्राह्मणों को सुन्दर जलपान कराता है उसे ब्रह्म (विद्या) दान का फल प्राप्त होता है । ५॥ जो मनुष्य श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मणों के लिये सुन्दर कमण्डलु का दान करता है, उस दाता के लिये मधु के समान मीठा दूध देनेवाली गौ नियुक्त रहती है | ६ | जो श्राद्धकाल में चक्राकार चिह्न से चिह्नित कमण्डलु प्रदान करता है, वह सभी मनोरथों को प्रदान करनेवाली, दिव्य गुण सम्पन्न दूध देनेवाली गो प्राप्त करता है |७| जो पुष्प की मालाओं से विभूषित, सभी सामग्रियो से समन्वित सुन्दर शय्या का दान करता है, उसकी वह शय्या उत्तम प्रासाद ( राजमहल ) के रूप में उसके पीछे पोछे (परलोक में) चलती है 15| श्राद्ध के अवसर पर रत्नादि से युक्त शय्या, एवं आसनादि से अलंकृत भवन को यतियों के लिए दान करनेवाला मनुष्य स्वर्ग में आनन्द की प्राप्ति करता है । मोती, वैदूर्य, विविधवस्त्र, रत्न, करोड़ों अरबों की संख्या में दिव्य वाहन, तथा अतिप्रकाशमान, रत्नादि से विभूषित, चन्द्रमा और सूर्य के समान एक दिव्यवाहन प्राप्त करता है उस दिव्य विमान का कभी विनाश नहीं होता १९-१११ इच्छानुसार गमन करनेवाला, मन के समान वेगशाली बहु रथ चारों ओर से अप्सराओ द्वारा घिरा रहता है । उस श्रेष्ठ विमान में चारों ओर से उसकी स्तुति को