पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६३८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

नवषष्टितमोऽध्यायः ब्रह्मधनं प्रसृता सा तत्त्वलां चैव कन्यका | एवं पिशाचकन्ये ते मिथुने द्वे प्रसूयताम् ॥ तयोः प्रजाविसर्गं च ब्रुवतो में निबोधत हेतृप्रहेतृरुग्रश्च ( ? ) पोरुषेयो वधस्तथा । विस्फूजिश्चैव वातश्च आपो व्याघ्रस्तथैव च सर्पश्च राक्षसा होते यातुधानात्मजा दश । सूर्यस्यानुचरा होते सह तेन भ्रमन्ति च हेतृपुत्रस्तथा लङ्कुर्लङ्कोवेव चात्मजौ । माल्यवांश्च सुमाली च प्रहेतृतनयाञ्णु ॥ प्रहेतृतनयः श्रीमापुलोमा नामविश्रुतः वधपुत्रौ दुराचारों विघ्नश्च शमनश्च ह । विद्युत्पुत्रो दुराचारो रुमनो नाम राक्षसः ॥ स्फूर्जपुत्रा निकुम्भश्च क्रूरो वै ब्रह्मराक्षसः | वातपुत्रौ विरागस्तु आपपुत्रस्तु जम्बुक: व्याघ्रपुत्रो निरानन्दो जन्तूनां विघ्नकारकः । इत्येते वै पराक्रान्ताः क्रूराः सर्वे तु राक्षसाः कीर्तिता यातुधानास्तु ब्रह्मधानान्निबोधत | यज्ञः पिता धुनिः क्षेमो ब्रह्मा पापोऽथ यज्ञहा स्वाफोटकः कलिः सर्पो ब्रह्मधानात्मजा दश | स्वसारो ब्रह्मराक्षस्यस्तेषां चेमाः सुदारुणाः रक्तवर्णा महाजिह्वाऽक्षया चैवोपहारिणी । एतेषामन्वये जाताः पृथिव्यां ब्रह्मराक्षसाः ६१७ ॥१२६ ॥ १२७ ॥१२८ ॥१२६ ॥१३० ॥१३१ ॥१३२ ॥१३३ ॥१३४ पुत्र और तत्त्वला नाम की कन्या का जन्म दिया। इस प्रकार उन दोनों पिशाच कन्याओं ने दो दो सन्ततियाँ उत्पन्न की । अब उनके द्वारा होने वाली प्रजाओं (सन्तानों) का सृष्टि क्रम सुनिये, मै कह रहा हूँ |१२२-१२६। हेतृ, प्रहेतृ, उग्र, पौरुषेय, वघ, विस्फूजि, वात, आप व्याघ्र और सर्प - ये दस राक्षस यातुधान के आत्मज और सूर्य के अनुचर हैं, सूर्य के साथ ही ये भी भ्रमण करते है। इनमे हेतृ का पुत्र लंकु हुआ | लंकु के माल्यवान् और सुमाली नामक दो पुत्र हुये | अब प्रहेतृ के पुत्रों को सुनिये, उस प्रहेतृ का पुत्र प्रलोमा हुआ जो अपने समय में परम विख्यात था । १२७-१२६ वध के दो दुराचारी पुत्र विघ्न और शमन थे। विद्युत् का पुत्र परम दुराचारी रुमन नामक राक्षस हुआ | स्फूर्ज का पुत्र निकुम्भ था जो उम्र प्रकृति वाला एवं ब्रह्म राक्षस था, वात का पुत्र विराग नामक ओर जम्बुक हुआ । व्याघ्र का पुत्र निरानंद नामक हुआ, जो जन्तुओं को विघ्न पहुँचाने वाला था। ये सब के सब परम पराक्रमशील राक्षस क्रूर प्रकृति के थे । यातुवानों का वर्णन तो मैं कर चुका । अव ब्रह्मधान के पुत्रों को सुनिये यज्ञ, पिता, धुनि, क्षेम, ब्रह्मा, पाप, यज्ञहा, स्वाकोटक, कलि और सर्प - ये दस ब्रह्मधान के पुत्र है ।१३० - १३२३ | उन दसो की बहनें ब्रह्म राक्षसी थी, जिनमें ये निम्नलिखित परम दारुण स्वभाव वाली थी, रक्तकर्णा, महाजिह्वा, अक्षया और उपहारिणी—इन ब्रह्मराक्षसियों के गर्भ से समस्त पृथ्वी पर निवास करने वाले ब्रह्मराक्षसों के जन्म हुये । ये ब्रह्मराक्षस गण श्लेष्मातक (लसोढ़े) फा०-७८