पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६२२

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अष्टषष्टितमोऽध्यायः स्वर्भानुर्वृषपर्वा च मुण्डकश्च महासुरः । धृतराष्ट्रच सूर्यश्च चन्द्र इन्द्रश्च तापिनः सूक्ष्मश्चैव निचन्द्रश्च ऊर्णनाभो महागिरिः । असिलोमा सुकेशश्च सदश्च बलको दश तथा गगनमूर्धा च कुम्भनाभो महोदरः । प्रमोदाहश्च कुपथो हयग्रीवश्च वीर्यवान् असुरश्च विरूपाक्षः सुपथोऽथ महासुरः । अजो हिरण्मयश्चैव शतमायुश्च शम्बरः शरभः शलभश्चैव सूर्याचन्द्रमसावुभौ । असुराणां सुरावेतौ सुराणां सांप्रताविमौ इति पुत्रा दनोवंशे प्रधानाः परिकीर्तिताः । तेषामपरिसंख्येयं पुत्रपौत्राद्यनन्तकम् इत्येते त्वसुराः प्रोक्ता दैतेया दानवाश्च ये । स्वर्भानुस्तु स्मृतो दैत्यो ह्यनुभानुर्दनोः सुतः ॥ इमे तु वंशानुगता दनोः पुत्रास्तु ये स्मृताः 1 एकाक्ष ऋषभोsरिष्ट: प्रलम्बनरकावपि । इन्द्रबाधनकेशी च मेरुः शंबोऽथ धेनुकः गवेष्ठिश्च गवाक्षश्च तालकेतुश्च वीर्यवान् । एते मनुष्यधर्मास्तु दनोः पुत्रा मया स्मृताः दैत्यदानवसंघर्षे जाता भीमपराक्रमाः । सिंहिकायामयोत्पन्ना विप्रचित्तिसुतास्त्विमे सैहिकेया इति स्याताश्चतुर्दश महासुराः । शतगालच बलवान्यासः शाम्बस्तथैव च + अनुलोमः शुचिश्चैव वातापिच सितांशुकः | हरकल्पः कालनाभो भौमश्च नरकस्तथा ६०१. ॥८ 11E ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ धृतराष्ट्र, सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, तापिन्, सूक्ष्म, निचन्द्र, ऊर्णनाभ, महागिरि, असिलोमा, सुकेश, सद, बलक, गगनमूर्धा, कुम्भनाभ महोदर, प्रमोदाह कुपथ, पराक्रमी हयग्रीव, असुर विरूपाक्ष, महासुर सुपथ, अज, हिरण्मय शतमायु, शम्बर, शरभ और शलभ ये प्रमुख दाननगण कहे गये हैं। सूर्य और चन्द्रमा ये दोनों पहले असुरों के देवता थे, इस समय ये देवताओं के देवता हैं ।४-१२ | दनु के वंश में उत्पन्न ये प्रधान दानव कहे जाते है, इन सबों के पुत्र पौत्रादि की संख्या असख्य है, अनन्त है । दिति और दनु के पुत्र गणों का, जो सब मसुर नाम से विख्यात हैं, परिचय कह चुका | स्वभानु ( राहु ) दिति का पुत्र कहा गया है, अनुभानु दनु का पुत्र `होने के कारण दानव कहा गया है |१३-१४। ये उपर्युक्त वंश परम्परागत दनु के पुत्र स्मरण किये जाते हैं । एकाक्ष, ऋषभ, अरिष्ट, पलम्ब, नरक, इन्द्रवाधन केशी, मेरु, शंब, घेनुक, गवेष्ठि, गवाक्ष, पराक्रमी तालकेतु- ये दनु के पुत्र मनुष्यों के धर्म-कर्म का आचरण करने वाले हैं - ऐसा मैं जानता हूँ । विप्रचित्ति के भयानक पराक्रमशाली चौदह पुत्र दैत्यों और दानवों के संघर्ष में सिंहिका के संयोग से उत्पन्न हुये थे, इस कारणवश वे चौदहों महान असुर सैहिकेय के नाम से प्रसिद्ध हुए। जिनके नाम शतगाल, बलवान् न्यास, शाम्ब, अनुलोम, शुचि, वातापि, सिताशुक, हर, कल्प, कालनाभ, भौम और नरक, इनमें सब से ज्येष्ठ पुत्र का नाम + एतदधंस्थाने इदमर्ध ख. ग. घ. ङ. पुस्तकेपु 'इल्वला नमुचिश्चैव वातापी दसृयाजकः' इति । फा० - ७६