पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६१०

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सप्तषष्टितमोऽध्यायः ततस्ते व पुनर्देवा वैकुण्ठाः प्राप्य चाक्षुषम् | साध्यायां द्वादश सुता जज्ञिरे धर्मसूनवः ततस्ते वै पुनः साध्याः संक्षीगे चाक्षुषेऽन्तरे | उपस्थिते मनोः सर्गे पुनर्वैवस्वतस्य ह आद्ये त्रेतायुगसुखे प्राप्ते वैवस्वतस्य तु । अंशेन साध्यास्तेऽदित्यां मारीचात्कश्यपात्पुलः जज्ञिरे द्वादशाऽऽदित्या वर्तमानेऽन्तरे पुनः | यदा त्वेते समुत्पन्नाश्चाक्षुषस्यान्तरे मनोः ततः स्वायंभुवे साध्या जज्ञिरे द्वादशामराः । एवमाद्या ज्यास्ते वै शापात्समभवंस्तदा य इमां सप्तसंभूति देवानां देवशासनात् । पठेद्यः श्रद्धया युक्तः प्रत्यवायं न गच्छति इत्येता भूतयः सप्त जयानां सप्तलक्षणाः । परिकान्ता सया वाद्य किं भूयः श्रोतुमिच्छथ ॠषय ऊचुः दैत्यानां दानदानां च गन्धर्वोरगरक्षसाम् । सर्पभूतपिशाचानां पशूनां पक्षिवीरुधाम् ॥ उत्पत्ति निधनं चैव विस्तरात्कथयस्व नः एवमुक्तस्तदा सूत उवाच ऋषिवत्तवान् । दितेः पुत्रद्वयं जज्ञे कश्यपादिति नः श्रुतम् कश्यपस्थाऽऽत्मजौ तौ वँ सर्वेभ्यः पूर्वजौ स्मृतौ । सौत्येऽहन्यतिरात्रस्य कश्यपस्थाऽऽश्वमेधिके ५८६ ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ ।।४५ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० हुये और यज्ञों में भाग के अधिकारी हुए। तदनन्तर चाक्षुष मन्वन्तर में आकर वे वैकुण्ठ नामक देवगण साध्या के गर्भ से धर्म के बारह पुत्रो के रूप में उत्पन्न हुए। तदनन्तर चाक्षुष मन्वन्तर की समाप्ति होने पर जव वैवस्वत मनु की कार्यावधि प्रारम्भ हुई तो वे साध्य देवगण पहले त्रेता युग के प्रारम्भिक काल मे अंश भाग से अदिति मे मरीचि पुत्र कश्यप के संयोग से उत्पन्न हुए |४०-४३१ और इस प्रकार इस वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर में चारह आदित्यों के नाम से इसकी प्रसिद्धि हुई | स्वायंभुव मन्वन्तर में जय नाम से विख्यात जो आदि देवगण थे वे ही चाक्षुष मन्वन्तर में शापवश साध्य नाम से विख्यात हुए और वे ही नेवस्वत मन्वन्तर में शाप वश आदित्य नाम से भी विख्यात हुए । ब्रह्मा के शाप से होनेवाली देवताओं की इन सात उत्पत्तियों का वृत्तान्त जो श्रद्धापूर्वक पढता है वह पाप से लिप्त नही होता । जय नामक देवगणों की इन सात उत्पत्तियो को मैं कह चुक्रा अव इसके बाद क्या सुनना चाहते हो १४४-४७॥ मैं ऋऋषियों ने कहा- मृतजी ! अब हम लोग दैत्य, दानव, गन्धर्व, उरग (सर्प राक्षस, सर्प भूत, पिशाच पशु, पक्षी, एवं लता वृक्षादि की उत्पत्ति तथा विनाश का वृत्तान्त सुनना चाहते हैं, विस्तार पूर्वक वतलाइये ? |४८ | ऋषियों के ऐसा पूछने पर उन सर्वश्रेष्ठ ऋपियों से सूत ने कंहा, ऋषिवृन्द ! कश्यप के संयोग से दिति को दो पुत्र उत्पन्न हुए - ऐसा हमने सुना है। कश्यप के वे दोनों आत्मज उनके अन्यान्य सन्तानो में सब से ज्येष्ठ थे। कश्यप के अश्वमेध यज्ञ के अन्तर्गत अतिरात्र याम के सौत्य दिवस के अवसर पर वह प्रथम