पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५३७

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वायुपुराणम् मन्वन्तरेवतीतेषु भविष्याणां तु साधनम् । एवमत्यन्नविनिं भवत्याभूतसंप्लान् मन्वन्तराणां परिवर्तनानि एकान्तवनानि महर्गतानि || महर्जनं चैव जनं तपश्च एकान्तमानि रम भवन्ति सत्ये तद्भाविनां तत्र तु दर्शनेन नानात्वदाटेन च प्रत्ययेन ॥ सत्ये स्थितनीह तवा तु तानि प्राप्ते विकारे प्रतिवर्गाने मन्यन्तराणां परिवर्तनानि मुञ्जन्ति सत्यं तु ततोऽपरान्ते ॥ ततोऽभियोगाद्विषमप्रमाणं विशन्ति नागवणमेव देवम् मन्वन्तराणां परिवर्तनेषु चिरप्रवृत्तेषु विधिन्यभायात् ॥ क्षणं रसं निष्ठति जोवलोकः क्षयोदयाच्यां परिवन्दमानः इत्युत्तराप्येवमृपिस्तुतानां धर्मात्मनां दिव्यां मनूनाम् ॥ वायुप्रगोतान्युपत्तग्य दृश्यं दिव्योजना व्यागमनासयोगः सर्वाणि राजपसुरविमन्ति ब्रह्मविदेवोरगवन्ति चैव ॥ सुरेशसप्तपिपितृप्रजेशर्युक्तानि सभ्यपरिवर्तनानि उदारवंशाभिजनद्युतीनां प्रकृष्टमेधाभिगमेधिनानां ॥ फीतिद्युतिस्यातिभिरवितानां पुष्यं हि विद्यापनमीश्वराणाम् ५१६ ।।१७६ 11800 ॥१७८ १७६ ॥१८० ॥१८१ ||१८२ भविष्यत्कालीन मन्वन्तरो का साधन इस प्रकार महाप्रनय पर्यन्त यन्त्र विद्रोग है। न्यारों के परिवर्तन होने पर सभी महलक को प्राप्त होते हैं, फिर के बादः जननोकतनोक तथा सत्यलोक में प्राप्त होते हैं |१७६-१७७। उन उनके नानात्य दर्शन एवं प्रत्यय के काम में परिवर्तन के उपरान्त वे उस सत्यलोक को छोड़ देते हैं और तदनन्तर प्रमाण रहित (अप्रमेव) नारायण भगवान् शरीर मे प्रविष्ट होते हैं । विधि की इच्छा सेनिन से प्रवृत्त त्यस्तों के परिवर्तनों में विनाश और उत्पत्ति द्वारा बँधा हुआ परिवर्तनशील जीवसमूह एक क्षण भी नहीं पर स्थिर नहीं रहा । इस प्रकार ऋषियो द्वारा सम्मानित, दिव्यदृष्टिसम्पन्न धर्मात्मा मनुगण के जोगन विवरण को, जिनका वागु ने वर्णन किया है, कही पर व्यास ( विस्तारपूर्वक ) और समाग ( संक्षेप ) दशैली में वर्णन किया जा चुका दिव्य बल से लोग देख सकते हैं। ये सारे विवरण राजपियों, देवपियों, ब्रह्मपियों, देवताओं तथा सर्पों के कथानक से संयुक्त हैं, सुरेश्वर छन्द्र सातों ऋषि, पितरों, प्रजापतियों एवं भलो तरह होनेवाले परिवर्तनों से युक्त है ।१७८-१८२। अति उदार वंश एवं कुल में उत्पन्न होनेवाले, परम फान्ति, सूक्ष्म बुद्धि, सत् कीर्ति, चुति, ख्याति आदि से सम्पन्न ऐश्वर्यशाली महापुरुषो का यशोगान अति पुण्यप्रद है। अति गोपनीय परम पवित्र,