पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५१९

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१६८ वायुपुराणम वीतरागा : सहातेजाः संहिताज्ञानपारगाः । इत्येते वह वृचः प्रोक्ताः संहिता येः प्रवर्तिताः वैशम्पायनगोत्रोऽसौ यजुर्वेदं व्यकल्पयत् । षडशोतिस्तु येनोक्ताः संहिता यजुषां शुभाः शिष्येभ्यः प्रददौ ताश्च जगृहस्ते विधानतः । एकस्तत्र परित्यक्तो याज्ञवल्क्यो महातपाः ॥ पडशीतिश्च तस्यापि संहितानां विकल्पकाः सर्वेषामेव तेषां वै त्रिधा भेटाः प्रकीर्तिताः । त्रिधा भेदात्तु ते प्रोक्ता भेदेऽस्मिन्नवमे शुभे उदीच्या मध्यदेशाश्च प्राच्याश्चैव पृथग्विधाः । श्यासायनिरुदीच्यानां प्रधानः संबभूव ह सध्यदेशप्रतिष्ठानास्परुणिः प्रथमः स्मृतः । आलम्विरादिः प्राच्यानां त्रयोदश्यादयस्तु ते इत्येते चरकाः प्रोक्ताः संहितावादिनो द्विजाः । ऋषयस्तद्वचः श्रुत्वा सुतं जिज्ञासवोऽब्रुवन् चरकाध्वर्यवः केन कारणं ब्रूहि तत्त्वतः । किं चीर्ण कस्य हेतोश्च चरफत्वं च भेजिरे || इत्युक्तः प्राह तेषां स चरकावमभूद्यया

118 आर्यत्वादेकवचनम् । ॥६ ॥७ ॥द NE ॥१० शिष्य चीतराग, महातेजस्वी तथा संहिताओं के पारगामी विद्वान् थे, यतः इन्होंने संहिताओं का विस्तारपूर्वक प्रवर्तन किया था । अतः बहवृच के नाम से भी विख्यात हैं । यजुर्वेद की परम कल्याणप्रद छियासी संहिताम का प्रणयन करने वाले वैशम्पायन जो यजुर्वेद के उद्धारक कहे गये है।४-५॥ वैशम्पायन ने उस संहिताओं की शिक्षा अपने समस्त शिष्यों को दी और उन लोगो ने विधिपूर्वक उन्हें ग्रहण किया, महातपस्वी मुनिवर याज्ञवल्क्य हो केवल एकमात्र उनको शिक्षा से वच रहे | वे भी यजुर्वेद की छियासी संहिताओं की रचना करनेवाले हुये । इसके अतिरिक्त उनके सभो शिष्यगणों मे भी तीन भेद कहे जाते हैं। इस प्रकार नव भेदयुक्त संहिता के उदीच्य (उत्तरी) मध्यदेशीय और प्राच्य (पूर्वीय) ये तीन प्रमुख भेद कहे गये है। उनमें से उत्तर देशवासियों में श्यामायनि, मध्यदेशवासियों में आरुणि और त्रयोदश्यादि, पूर्वीय देशवासियों में आलम्बि प्रधान माने गये हैं ।६-९। वे सभी संहिताओं के जानने वाले द्विज गण चरक नाम से प्रसिद्ध है। ऋषियों ने इस प्रकार सुतकी बातें सुन कर जिज्ञासा प्रकट की कि ये अध्वर्युगण किस कारण चरक नाम से पुकारे जाते हैं। इसका वास्तविक फारण हमें बतलाइये कि इन्होंने ऐसे कौन से आचरण किये थे, जिसके कारण चरकत्व को प्राप्ति हुई । ऋषियों के इस प्रकार पूछने पर सूत ने वह कथा वतलाई प्रकार उन्हें चरकत्व की प्राप्ति हुई थी ।२०-१११ ॥ ११