पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४९४

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एकोनषष्टितमोऽध्यायः ४७३ अथोनषष्टिऽध्यायः ऋषिलक्षणम् सूत उवाच युगेषं यास्तु जायन्ते प्रजास्ता वै निबोधत । आसुरी सर्पगोपक्षिपैशाची यक्षराक्षसी । यस्मिन्युगे च संभूतिस्तासां यावत्तुं जीवितम् १ पिशाचासुरगन्धर्वा यक्षरांक्षसपन्नगाः । युगमात्रं तु जीवन्ति ऋते मृत्यु वधेन ते ।।२ मनुष्याणां पशूनां च पक्षिणां स्थावरैः सह । तेषामायुः परिक्तान्तं युगधर्मेषु सर्वशः ॥३ अस्थितिस्त कलौ दृष्टाः भूतनमथुषस्तु च। परमायुः शतं त्वेतन्मनुष्याणां कलौ स्मृतम् - ४ देवासुरप्रमाणात्तु सप्तसप्ताङ्गुलं हसत्। अङ्गुलानां शतं पूर्णमष्टपञ्चाशदुत्तरम् देवासुरप्रमाणं तदुच्छायं कलिजैः स्मृतम् । चत्वारश्चाप्यशीतिश्च कलिजैरङ्गुलैः स्मृतम् स्वेनाङ्गुलप्रमाणेन ऊध्र्वमापादमस्तकम् ।'इत्येष मानुषोत्सेधो हसतीह युगान्तिके ॥ ५ ६ ।।७ अध्याय ५e ऋषियों के लक्षण सूतजी बोले-प्रत्येक युग में प्रो प्रजाएँ उत्पन्न होती है, उनका विवरण सुनिये । असुर सर्प, शु, पक्षी, पिशाच, यक्ष, राक्षसादि प्रजावगै जिस युग में जन्म लेकर जितने दिनो तक जीवन धारण करते हैं, उसे बतला, रहा है । पिशाच, असुर, गवर्नु, यक्ष राक्षस और सर्प–इन सब प्राणधारियों का यदि कोई वध न करे तो ये पूरे युग भर जीवित रहते है ।२। मनुष्य, पशु, पक्षी और स्थावर जीव गण अपने युग धर्म के अनुसार सभी युगो में पूर्ण , आयु तक जीवित रहते है ।३; केवल कलियुग में मनुष्य की आयु में अस्थिरता (अनिश्चितता) देखी जाती है । इस कलियुग में मनुष्य की अधिक से अधिक आयु केवल सौ वर्ष की कही गई है (४-५ ओर असुरो की ऊंचाई प्रमाण से मानव की ऊँचाई सातसात अंगुल न्यून होती है । वलियुग में उत्पन्न होने वाले ,मनुष्यो, के एक सौ अठ्ठावन अंगुल की ऊँचाई , देवताओं और असुरों की होती है । कलियुग में उत्पन्न मनुष्य के चरण से लेकर मस्तक तक की ऊँचाई अपने चौरासी अँगुल की होती है । फा०-६०