पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४६७

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Tण ४४८ मानुषं च शतं विद्धि दिव्यमसास्त्रयस्तु ते । दश चैव तथाऽहनि दिव्यो हृष विधिः स्मृतः ॥१५ त्रीणि वर्षशतान्येव षष्टिव (व) र्षाणि यानि च। दिव्यः संवत्सरो वृष मानुषेण प्रकीर्तितः ॥१६ त्रीणि वर्षसहस्राणि मानुषेण प्रमाणतः । त्रिशद्यानि तु वर्षाणि मतः सप्तषवत्सरः १७ नव यानि सहस्राणि वर्षाणां मानुषाणि तु । अन्यानि नवतिश्चैव क्रौञ्चः संवत्सरः स्मृतः ॥१८ षत्रशत्तु सहस्राणि वर्षाणां मानुषाणि तु । *षष्टिश्चैव सहस्राणि संख्यातानि तु संख्यया । वर्षाणां तु शतं ज्ञेयं दिव्यो हो ष विधिः स्मृतः १६ त्रीण्येव नियुतान्याहुर्वर्षाणां मानुषाणि च। षष्टिश्चैव सहस्त्राणि संख्यातनि तु संख्यया । दिव्यं वर्षसहस्र तु प्राहुः संख्याविदो जनाः २० इत्येवमृषिभिर्गीतं दिव्यया संख्ययाऽन्वितम् । दिव्येनैव प्रमाणेन युगसंख्याप्रकल्पनम् २१ चत्वारि भारते वर्षे युगानि कवयो विदुः । पूर्वं कृतयुगं नाम ततस्त्रेता विधीयते । द्वापरश्च कलिश्चैव युगान्येतान्यकल्पयत् चत्वार्याहुः सहस्राणि वर्षाणां तु कृतं युगम् । तत्र तावच्छती संध्या संध्यांशश्च तथाविधः ।।२३ २२ जानना चाहिये । यह देवताओं के एक वर्ष का प्रमाण स्मरण किया गया है ।१३-१५। मानव के तीन सौ साठ । वर्षों का एक दिव्य वर्प कहा गया है । मानव के तीन सहस्र और तीस वर्षों का एक सप्तषिवत्सर कहा गया है और नव सहस्र नव्वे वर्षों का एक काँच संवत्सर स्मरण किया गया है । मानव के छत्तीस सहस्र वर्षों का देवताओं का एक सौ वर्षे स्मरण किया जाता है—यह देवताओं के वर्ष की गणना का क्रम कहा गया है ।१६१४तीन नियुत साठ सहस्र मानव वर्षों का एक सहस्र दिव्य वर्षे संख्याविद् लोग जानते हैं । इस प्रकार ऋषियों ने दिव्य संख्या द्वारा दिव्य प्रसाण से युग की अवधि की कल्पना की है । भारतवर्ष मे कवियों ने युगों की संख्या चार वतलाई है, इन चारो युगों में सर्वप्रथम कृतयुग तदनन्तर त्रेता, द्वापर और कलियुग की कल्पना हुई ।२०-२२। उनमें कृतयुग को चार सहस्र वर्षों का कहा गया है, और उसकी संध्या तथा संध्यां का प्रमाण चार सौ वर्षों का है । अन्य तीनों युगों के प्रमाण, संख्या तथा संध्यांश मे क्रमशः एक-एक सत्र

  • इदमर्घ नास्ति क. खः घ. पुस्तकेषु ।

१. आनन्दाश्रम की प्रति में इस श्लोक के मध्य में 'पष्टिश्चैव सहस्राणि वर्षाणां मनुपाणि तु’ इतना पाठ अविक दिया गया है, जो अयुक्त है। क्योकि इस प्रकार साठ सहन मानवं वर्ष का अर्थ होता है जो अशुद्ध है । गणित करने पर छत्तीस सहस्र मानव वर्ष का एक शत दिव्य वर्प होता है ।