पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४४८

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पञ्चपञ्चाशोऽध्यायः ४२६ ।।८ त्वं धात त्वं च कर्ताऽस्य त्वं लोकान्सृजसि प्रभो। त्वत्प्रासादाच्च कल्याणं प्राप्तं त्रैलोक्यमव्ययम् ।। असुराश्च जिताः सर्वे बलिर्बद्धश्च वै त्वया ७ एवमुक्तः सुरैविष्णुः सिद्धेश्व परमर्षिभिः । प्रत्युवाच ततो देवान्सर्वांस्तान्पुरुषोत्तमः भूयतामभिधास्यायमें कारणं सुरसत्तमाः । यः स्रष्टा सर्वभूतानां कालः कालकरः प्रभुः । येनाहं ब्रह्मणा सार्ध सृष्टा लोकाश्च मायया । तस्यैव च प्रसादेन आदौ सिद्धत्वमागतम् १० पुरा तमसि चाव्यक्ते त्रैलोक्ये ग्रासिते मया । उदरस्थेषु भूतेषु लोवेऽहं शयितस्तदा ११ सहस्रशो भूत्वाऽथ सहस्राक्षः सहस्रपात् । शङ्कचक्रगदापाणिः शयितो विमलेऽम्भसि ।।१२ एतस्मिन्नन्तरे झरात्पश्यामि ह्यमितप्रभम् । शतसूर्यप्रतीकाशं ज्वलन्तं स्वेन तेजस १३ चतुर्वक्त्रं महायोगं पुरुषं कावनभम् । कृष्णाजिनधरं देवं कमण्डलुविभूषितम् ।। निमेषान्तरमात्रेण प्राप्तोऽसौ पुरुषोत्तमः १४ ततो मामब्रवीद्ब्रह्मा सर्वलोकनमस्कृतः । कस्त्वं कुतो वा कंचेह तिष्ठसे वद मे विभो १५ अहं कर्ताऽस्मि लोकानां स्वयंभूविश्वतोमुखः। एवमुक्तस्तदा तेन ब्रह्मणाऽहमुवाच तम् १६ कल्याण प्राप्त होता है । आपने वलि को बाँध कर सब असुरों को जीत लिया है |५-७। इस प्रकार जब देवों और सिद्धों के द्वारा विष्णु को स्तुति की गई तब वे पुरुषोत्तम सब देवों से बोले-देवों ! हम इसका कारण बताते हैं, आप सब सुनें । जो सब जीवों के स्रष्टा है, काल है, काल के भी स्रष्टा प्रश्न है और जिन्होने माय का विस्तार कर ब्रह्मा के साथ सब लोगों की सृष्टि की है, उन्हीं के प्रसाद से हमने समर मे जय लाभ किया है ।८-१०। पूर्व काल में जब तीनों लोक अन्धकार से व्याप्त था और जीवगण हमारे उदर में निवास कर रहे थे, उस समय हम भी हजार सिर, हजार नयन और हजार चरण धारण कर एवं शङ, चक्र, गदा से जल सुशोभित होकर विमल में शयन कर रहे थे । उसी समय हमने एक योगी पुरुष को दूर से देख । वे अत्यन्त प्रभा से युक्त, सौ सूर्य की तरह दीप्तिमान्, अपनी प्रभा से प्रकाशवान् चतुरानन, सुवर्ण की तरह दीप्तिमान् तथा कृष्ण चमें और कमण्डलु से विभूषित है । वे पुरुषोत्तम एक निमेष के भीतर ही हमारे निकट उपस्थित हो गए । तब सब लोको के द्वारा नमस्कृत ब्रह्मा ने हमसे कह -विभो ! आप कोन हैं और कहाँ से आकर यहाँ निवास करते है ? यह आप हमसे कहें । हम चतुरानन, लोकों के कर्ता और स्वयम्भू है १११५इस प्रकार ब्रह्मा द्वारा कहे जाने पर हमने ब्रह्मा से कहा- हम सभी लोकों के कर्ता और बार-बार संहार करने वाले है । इस प्रकार हम दोनों बोल रहे थे और परस्पर जय पाने