पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४४०

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चतुष्पञ्चाशोऽध्यायः ४२१ ५२ अथाऽष्टगुणमैश्वर्यं भवतां संप्रकल्पितम् । केन व्याङ्गततैश्वर्या यूयं वै सुरसत्तमः त्रैलोक्यस्येश्वरा यूयं सर्वे वै विगतज्वराः। प्रजासर्गे न सोऽस्तीह आज्ञां यो मे निवर्तयेत् ॥५३ विमानगामिनः सर्वे सर्वे स्वच्छन्दगामिनः । अध्यात्से चाधिभूते च अधिदैवे च नित्यशः । प्रजाः कर्मविपाकेन शक्ता यूयं प्रततुम् ।।५४ तत्किमर्थं भयोद्विग्ना मृगाः सिंहदता इव । कि दुःखं केन संतापः कुतो वा भयमागतम् । एतत्सर्वं यथान्यायं शीघ्रमाख्यातुमर्हथ ५५ श्रुत्वा वाक्यं ततस्तस्य ब्रह्मणो वै महात्मनः । ऊचुस्ते ऋषिभिः सार्ध सुरदैत्येन्द्रदानवाः ॥५ ६ सुरासुरैर्मथ्यमाने पथोध च महात्मभिः । भुजङ्गभृङ्गसंकाशं नोलजीमूतसंनिभम् ।। प्रादुर्भूतं विषं घोरं संवर्ताग्निसमप्रभम् ५७ कालमृत्युरिवोद्भूतं युगान्तादित्यवर्चसम् । त्रैलोक्योत्सदिसूर्याभं प्रस्फुरन्तं समन्ततः ५८ विषेणोत्तिष्ठमानेन कालानलसमत्विषा। निर्दग्धो रक्तगौराङ्गः कृतः कृष्णो जनार्दनः दृष्ट्वा तं रक्तगौराङ्गं कृतं कृष्णं जनार्दनम् । भीताः सर्वे वयं देवास्त्वामेव शरणं गतः ।।६० सुराणामसुराणां च श्रुत्वा वाक्यं पितामहः। प्रत्युवाच महातेजा । लोकानां हितकाम्यया ।।६१ ५ चित्त हो रहा ? सुरसत्तम हमने आप लोगों के ही लिये अष्ट गुण ऐश्वर्य की सृष्टि की है । उद्विग्न क्यों है ! फिर किसने आपके उस ऐश्वर्य का अपहरण किया है ? आप सब त्रैलोक्य के ईश्वर है, आप सबको कोई सन्ताप नही होता है । हम यह भी देख रहे है कि, हमारी सृष्टि में कोई भी ऐसा नहीं है. जो हमारी आज्ञा का उल्लंघन करे ॥५१-५३। आप सब स्वच्छन्द गामी विमानविहारी है और प्रजाजन के आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक कर्म विपाक को भी बदल देने मे समर्थ है। यह सत्र होते हुए भी फिर इयों आप इस तरह डरे हुए हैं, जैसे सिंह से पीड़ित हरिण हो । क्या दुःख है, कौन शोक है यह भय कहाँ से आया है ? यह सब आप हमें शीघ्र बतलायें 1५४५५ महात्मा ब्रह्मा की बातों को सुनकर ऋषि प्रमुख देवदानवगण बोले-‘महात्मा देव-दानवों द्वारा क्षीरसागर मया जा रहा था कि एक भयङ्कर विप निकला, जो संवर्तक अग्नि को भौति प्रभवाला और भूजङ्ग, भृङ्ग एवं नील मेघ की तरह काला है। वह विष काल मृत्यु की तरह, युगान्त काल में तीनों लोको को जलाने वाली सूर्य की प्रतप्त किरण की तरह सभी दिशाओं में प्रस्फुरित हो रहा है उस विष से जो कालाग्नि के समान कान्ति निकल रही है, उससे लाल और गोरे शरीर वाले विष्णु काले हो गये है । लाल और गोरे विष्णु को काला होते देखकर हम सभी रेषगण डर गये है और आपकी शरण में आये है |५६-६०। महातेजस्वी ब्रह्मा ने देवदानवों की वात सुनकर संसार के कल्याण के लिये कहा-हे तपोघन ऋषियों ! और सभी देवों ! आपलोग सुने. सागर के मये