पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४३६

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चतुष्पञ्चाशोऽध्यायः ४१७ तद्वयं श्रोतुमिच्छासस्त्वत्प्रसादात्प्रभञ्जन । नीलता येन कण्ठस्य कारणेन्नाम्बिकापतेः ११ श्रोतुमिच्छामहे सस्यक्तव वक्त्राद्विशेषतः । यावद्वचः प्रवर्तन्ते सार्थास्ताश्च त्वयेरिताः १२ वर्णस्थानगते वायौ वाग्विधिः संप्रवर्तते । ज्ञानं पूर्वमथोत्साहस्त्वत्तो वायो प्रवर्तते ॥१३ त्वयि निष्पन्दमाने तु शेषा वर्णप्रवृत्तयः। यत्र वाचो निवर्तन्ते देहबन्धाश्च दुर्लभाः १४ तत्रापि तेऽस्ति सद्भावः सर्वगस्त्वं सदाऽनिल । नान्यः सर्वगतो देवस्त्वदृतेऽस्ति समीरण ३१५ एष वै जीवलोकस्ते प्रत्यक्षः सर्वतोऽनिल । वेत्थ वाचस्पति देवं मनोनायकमीश्वरम् ॥१६ ब्रूहि तत्कण्ठदेशस्य किंकृता रूपविक्रिया । श्रुत्वा वाक्यं ततस्तेषामृषीणां भवितात्मनाम् । प्रत्युवाच महातेजा वायुर्लोकनमस्कृतः १७ १८ वायुरुवाच पुरा कृतयुगे विप्रो वेदनिर्णयतत्परः । वसिष्ठो नाम धर्मात्मा मनसो वै प्रजापतेः पप्रच्छ काfतकेयं वै मयूरवरवाहनम् । महिषासुरनारीणां नयनाञ्जनतस्करम् महासेन महात्मानं मेघस्तनितनिस्वनम् । उमभनःप्रहर्षेण बालकं छद्मरूपिणम् १६ ।।२० है, यह पवित्रस्माओं के लिये पुण्य-जनक और परम गुह्य है । यह कथा हम आपकी कृपा से मुनना चाहते है कि अम्बिकापति महादेव का कण्ठ किस कारण नील वर्ण का हुआ है यह कथा हम विशेषरूप से आपके मुंह से सुनना चाहते है क्योकि वायु द्वारा प्रेरित होने पर ही वचनों के उच्चारण में सार्थकता आती है । वायु ! वर्ण स्थान मे जब आप जाते है, तब शब्दो का उच्चारण होता है । आपसे ही पहले ज्ञान उत्साह और प्रवृत्ति उत्पन्न होती है ।१०-१३। शरीर से आपके निकल जाने पर वणों का उच्चारण समाप्त हो जाता है, वचन नही निकलते और क्या कहा जाय, देह धारण करना भी कठिन हो जाता है । अनिल ! आपका सबसे सद्भाव है । आपकी सर्वत्र गति है । समीरण, आपके अतिरिक्त और कोई भी देवता सर्वत्र गमन करने वाले नही है । अनिल ! यह जीवलोकं आपका प्रत्यक्ष करता है, आपो मन का नायक, ईश्वर और वाचस्पति देव समझत है । हे वायु ! आप बतावे कि, किस प्रकार नीलकण्ठ के कण्ठ मे विकार उत्पन्न हुआ ? 1१४-१७| पवित्रात्मा ऋषियो के वचन को सुनकर लोक-पूज्य और महातेजस्वी वायु वोले- ब्राह्मणो ! पहले कृतयुग में प्रजापति के मानस पुत्र विद्वान् और घर्मारमा वशिष्ठ नाम के ब्राह्मण थे । उस्होने भक्तिपूर्वक काfतकेय से पूछा । कातकेय का मयूर उत्तम वाहन है, वे महिषासुर की स्त्रियो के नयनो से काजल हर लाये है, वे उमा के फाo• -५३