पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३७७

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u ३५८ उखास्यमग्निसंयोगाज्जलमुद्रिच्यते यथा । तथा महोदधिगतं तोयमुद्रिच्यते ततः १२६ अन्यूना ह्यतिरिक्ताश्च वर्धन्त्यापो हसन्ति च । उदयास्तमितेश्चेन्दोः पक्षयोः शुक्लकृष्णयोः । क्षयवृद्धिरेवमुदधेः सोमवृद्धिक्षयात्पुनः १३० दशोत्तराणि पञ्चैव अणु लीनां शतानि तु । अपां वृद्धिः क्षयो दृष्टः समुद्राणां तु पर्वसु ॥१३१ द्विरापत्वात्स्मृता द्वीपाः सर्वतलोदकावृताः । उदकस्याऽऽधानं यस्मात्तस्मादुदधिरुच्यते ॥ अपर्वाणस्तु गिरयः पर्वभिः पर्वताः स्मृताः । प्लक्षद्वीपे तु गोमेदः पर्वतस्तेन चोच्यते १३२ शाल्मलिः शाल्मलद्वप पूज्यते च महाद्रुमः । कुशद्वीपे कुशस्तम्बस्तस्य नाम्ना स उच्यते ॥१३३ क्रौञ्चद्वीपे गिरिः फौचो मध्ये जनपदस्य ह । शाकद्वीपे द्रुमः शाकस्तस्य नाम्ना स उच्यते ॥१३४ न्यग्रोधः पुष्करद्वीपे तत्र तैः स नमस्कृतः । महादेवः पूज्यते तु ब्रह्मा त्रिभुवनेश्वरः १३५ तस्मिन्निवसति ब्रह्मा साध्यैः सार्ध प्रजापतिः । उपासते तत्र देवास्त्रयस्त्रिंशन्महषभिः । स तत्र पूज्यते चैव देवैर्देवोत्तमोत्तमः १३६ जम्बूद्वीपात्प्रर्वतन्ते रत्नानि विविधानि च। द्वीपेषु तेषु सर्वेषु प्रजानां हि क्रमात्त्विह १३७ समाकर रह जाता है । वर्तन मे रखा हुआ जल आग पर चढ़ाये जाने से जैसे खौलकर बढ़ जाता है. उसी प्रकार समूद्र का जल भी बढ़ता है । शुक्ल और कृष्णपक्ष मे चन्द्रमा के उदय और अस्त के हिसाब से नियमपूवक-~न कम न अधिक जल बढा करता है । सारांश यह है कि, चन्द्रमा को क्षय-वृद्धि के अनुसार \ ही समुद्र के जल का भी क्षय और वृद्धि होती है ।१२७१३० पर्वो में समुद्र का जल एक सौ पन्द्रह अंगुल 'तक बढ़कर घटा करता है, ऐसा देखा गया है। दोनों ओर जल वहने के कारण और सभी तरफ जल से घिरे रहने के कारण द्वीपो की "बीप" सज्ञा पडी है। जिस कारण सेमद्र में जल रहा करता है, इसलिए उसे उदवि कहते हैं । बिना पवं गाँठ या स्तर वाले गिरि है और पर्ववाले पवंत कहलाते कहलाते हैं । इसी नियम के अनुसार प्लक्षद्वीप मे जो गोमेद है. वह पर्वत है ।१३१-१३२। शाल्मलद्वीप में शलमलि नामक महावृक्ष पूज्य है । कुशद्वीप में कुछ नामक तृण है, अतः उसीके नाम पर वह द्वीप कुशद्वीप कहलाता है क्रौंच द्वीप के मध्यदेश में क्रौंच नामक पहाड़ है । शाकद्वीप मे शाकवृक्ष है, अतः वह शाकद्दोष कहलाता है १३३-१३४ पुष्करद्वीप में एक वटवृक्ष है, सब जिसकी वन्दना किया करते हैं । यह त्रिभुवनेश्वर महादेव और ब्रह्मा पूजित होते है। वहाँ साध्यों के साथ प्रजापति ब्रह्मा निवास करते हैं और तृतीस महपियों के साथ देवगण उपसना किया करते हैं । वह देवों के द्वारा देवाधिदेव ब्रह्मा पुजित होते है ।१३५-१३६। जम्बूद्वीप में विविध श्रुति के रत्न उत्पन्न होते हैं । उस समस्त द्वीपो