पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३६३

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३४४ तथैव मलयद्वीपमेवमेव सुसंवृतम् ।) मणिरत्नाकरं स्फीतमाकरं कनकस्य च ।।२० आफरं चन्दनानां च समुद्राणां तथाऽऽकरम् । नानाम्लेच्छगणाकीर्णा नदीपर्वतमण्डितम् २१ तत्र श्रीमांस्तु मलयः पर्वतो रजताकरः। महामलय इत्येवं विख्यातो वरपर्वतः २२ द्वितीयं मन्दरं नाम प्रथितं च सदा क्षितौ । +नानापुष्पफलोपेतं रम्यं देवfषसेवितम् । अगस्त्यभदनं तत्र देवासुरनमस्कृतम् २३ तथा कावनपादस्य मलयस्यापरस्य हि। निकुञ्जैस्तृणसोमाङ्ग राश्रमं पुण्यसेवितम् २४ नानापुत्पफलोपेतं स्वर्गादपि विशिष्यते । तत्रावतरते स्वर्गः सदा पर्वसु पर्वसु २५ तथा त्रिकूटनिलये नानाधातुविभूषिते । अनेकयोजनोत्सेधे चित्रसानुदरीगृहे २६ तस्य कूटतटे रम्ये हेमप्राकारतोरणा । निघूहवलभी चित्रा हर्यप्रासदमलिनी ।।२७ शतयोजनविस्तीर्णा त्रिशक्षायामयोजन। नित्यप्रमुदित स्फीता लङ्का नाम सहपुरी २८ सा कामरूपिणां स्थानं राक्षसानां महात्मनाम् । आवास बलदृप्तानां तद्विद्याद्देवविद्विषाम् । मानुषणामसंबाधा ह्यगस्या सा महापुरी २६ सुवर्ण की खाने है । चन्दन के वृक्ष भी अधिकाधिक होते हैं और समुद्र भी वहाँ अनेकों हैं । उस द्वीप में विभिन्न प्रकार के म्लेच्छ रहते है ओर नदी-पर्वतों से वह द्वीप भरा हुआ है । वहाँ मलय नामक एक शोभा सम्पन्न पर्वत है, जिसमे चाँदी को खाने हैं महामलय नाम का भी एक विख्यात और श्रेष्ठ पर्वत है ।२०२२॥ दूसरा मन्दर नाम का एक पर्वत है, जो इस पृथ्वी तल पर विख्यात है । यह रमणीय पर्वत अनेक फल-पुष्पो से युक्त है जहाँ देवपि निवास करते हैं । । यह अगस्त्य ऋषि का भवन है, जिसकी वन्दना देवता और असुर दोनो ही किया करते हैं (२३। मलय की तरह वहाँ एक और काचनपाद नाम का पर्वत है, जहां महात्माओ अनेक आश्रम हैं जो निकुज, तृण और सोमलता से वने हुए है ।२४। वह पर्वत नानाविध फलपुष्पो से युक्त और स्वर्ग से भी बढा-चढ़ा है । वह प्रत्येक पर्वत पर मानो स्वगं सदा उतरा करता है । इसके अनन्तर वह नाना धातुओ से विभूषित त्रिकूट पर्वत है, जिसके शिखर अनेक योजन ऊँचे है जिनमे गृह तुल्य अनेक विचित्र कन्दराएँ हैं । इस त्रिकूट के रमणीय शिखर पर सुवर्णमय परकोटे, तोरणो मे से सजाये गए द्वारो, वलभियोंकोठों और अटारियों से सुशोभित स योजन लम्बी तथा तीस योजन चौड़ी लंका नामक महपुरी है 1२५-२८। यह पुरी धन धान्य से समृद्ध और प्रसन्न नर नारियों से स्वयं हंसती सी जान पड़ती है । यह लंका इच्छानुरूप स्वरूप धारण करने वाले देवशत्रु बलशाली महात्मा राक्षसों का निवास स्थान + इदमर्थं नास्ति क ख. ग. पुस्तकेषु ।