पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३६१

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IU ३४२ अथाष्टचत्वारिंशोऽध्यायः भवनविन्यासः सत उवाच ४ दक्षिणेनापि बर्षस्य भारतस्य निबोधत । दशयोजनसाहस्री समतीत्य महार्णवम् १ त्रीण्येव तु सहस्राणि योजनानां समायतम् । अतस्त्रिभागविस्तीर्णं नानापुष्पफलोदयम् विद्युत्वन्तं महाशैलं तत्रैकं कुलपर्वतम् । येन कूटतटैनैकैस्तद्वीपं समलंकृतम् ३ प्रसन्नस्वादुसलिलास्तत्र नद्यः सहस्रशः। वाष्यस्तस्य तु द्वीपस्य प्रवृत्ता विमलोदकाः तस्य शैलस्य च्छिद्रेषु विस्तीर्णेष्वायतेषु च । अनेकेषु समृद्धानि नानाकाराणि सर्वशः १५ नरनारीसमाख्यानि सुदितानि महान्ति च । तेषां तलप्रवेशानि सहस्राणि शतानि च पुराणि संनिविष्टानि पर्वतान्तर्गतानि च । सुसंबढानि चान्योन्यसेद्वरणितान्यथ दीर्घश्मश्रुधरात्मानो नीला मेयसमप्रभाः । जातमात्रः प्रजास्तत्र अशीतिपरम्लयुषः शाखामृगसधर्माणः फलमूलाशिनस्तथा । गोधमणो ह्यनिदष्टाः शौचाचारविद्भजताः । e ७ ८ अध्याय ४८ सूतजी बोले-भारतवर्ष के दक्षिण दस हजार योजन का एक महासागर है जिसमे तीन हजार योजन विस्तीर्ण तीन भागो मे विभक्त एक द्वीप है जो नाना भाँति के फल पुष्पो से समृद्ध है ।१-२ वहाँ विद्युत्वान् नामक एक महारौल कुल पर्वत है, जिसके अनेक शिखरो से वह द्वीप सुशोभित है, वहां हजारों नदियाँ हैं, जिनका जल निर्मल और सुस्वादु है । उस द्वीप को वापियो का जल भी निर्मल है 1३-४। उस पर्वत की अनेको विस्तीर्ण और चौड़े दरों में विभिन्न वर्ण और आकृति के अनेकों प्रसन्नहृदय स्त्री-पुरुष रहा करते है ' उस पर्वत के बीच तलदेश में उनके सैकड़ोहजारो पुर है, जो परस्पर एक मे एक मिले और एक ही हार वाले हैं |५-७ ७l वह वाले बड़ी-बड़ी दाढ़ी और मूछ रखते हैं तथा मेघ के समान नीलवर्ण के होते हैं । और सभी अस्सी वर्ष की आयु वाले होते हैं । वानरो की तरह फल-फूल खाकर जीवन यापन करते है और पशुओं की तरह शौच आदि आचारविचार से विहीन हैं ।६-। इस प्रकार के असभ्य मनुष्यों से वह द्वीप