पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३४०

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पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः ३२१ है।३१ ३२ है।३३ ३४ ३५ ३६ गन्धवणरसाढ्यानि स्पशपेतानि सर्वशः । तालागुरुगन्धानां चन्दनानां वनानि च भ्रमरैरुपगीतानि प्रफुल्लानि सदैब च । वृक्षगुल्मलताढयानि वनानि सुसुखानि च षट्पदनैपरीतानि द्विजैश्चान्यैद्वजोत्तमः । पद्मोत्पलवनाढ्यानि सरांसि च सहस्रशः भक्ष्यमाल्यसमृद्धाव बहुमाल्यानुलेपनाः । सनोहरमुखैश्विनैः पक्षिसंबंनिकूजिताः शयनासनोपभोगाश्च अनेकगुणविस्तराः । विहारभूमयो रम्याः सर्वर्तुषु सुखप्रदः आीडाः सर्वतः स्फीता मणिहेमपरिष्कृताः । शिलागृह वृक्षगृहा वरेष्याः कदलीगृहाः लतागृहसहस्राणि सुसुखानि समन्ततः । शुद्धशब्दलाभानि भूमिवेश्मशतानि च तपनीयगवाक्षणि मणिजालान्तराणि च । सुवर्णमणिचित्राणि सर्वत्र विपुलानि च महावृक्षसहस्राणि वरेण्यानि स सर्वशः। नानाकाराणि वासांसि सूक्ष्माणि सुसुखानि च मृदङ्गवेणुपणववीणाद्या बहुविस्तराः । फलति कल्पवृक्षाणां सहस्राणि शतानि च सर्वत्रैव तथोद्यानं सर्वत्रेव हि तपुरम् । सर्वदोषप्रमुदितं नरनारीसमाकुलम् । प्रवाति चनिलस्तत्र नानापुष्पाधिवासितः ३७ ३८ १३६ ४० ।।४१ और रसों से युक्त तथा सुख स्पर्श वहाँ तमाल, अगरु तथा चन्दनों के वन है, जहाँ भ्रमर प्रसन्न हो गाते रहते है। प्रफुल्लित वृक्षगुल्म और लताओं से युक्त कितने ही और सुखदायक वन है, जहाँ भौरे गुंजार करते रहते और चिड़ियाँ चहचहाती रहती है । ब्राह्मणो ! वहाँ हजारो सरोवर है जहाँ असख्य पन्न और उत्पल के वन है।३१३३सभी ऋतुओं में सुख देनेवाली रमणीय विहार भूमि में खाने की वस्तुये, माला, अनुलेपन, शयन, आसनादि उपभोग सामग्रियाँ प्रस्तुत रहती हैं, मनोहर मुख वाले चित्र-विचित्र पक्षियों का कलरव होता रहता है और वे विहारभूमि अनेक गुणो से युक्त है ।३४-३५ वहां स्वर्ण और मणियो से परिष्कृत एवं सभी प्रकार से सम्पन्न उद्यान, शिलागृह, वृक्षगृह और श्रेष्ठ कदलीगृह है। सभी प्रकार के सुख देने वाले कितने ही लतागृह है। शद्ध की तरह उज्ज्वल कितने ही भूमिगृह भी है, जिनमें सने ओर मणियों से चित्र बने है। एवं सोने और ही खिड़किय है । वे भवन भी बड़े-बड़े ।३६-३८। बड़ेबड़े हजारों मणियों की है वहाँ -वृक्ष, विविध मूल्यवान प्रकार के और सुख पहुँचानेवाले महीन कपड़े है । मृदङ्ग, वेणु, पणव, वीणा आदि वाजे वजते रहते हैं। वहाँ हजारों सैकड़ों कल्पवृक्ष है, जो इच्छानुसार फल देते है ।३६-४०। सभी जगह , सभी उद्यान है जगह नगर है। सम्पूर्ण द्वीप आनन्ददायक है, जहाँ सुखी नरनारी निवास करते हैं। वह घायु मे विविध फूलो की फ०४१