पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३१४

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चत्वारिंशोऽध्यायः १६ ।।२० २१ ।।२२ स्निग्धपर्णमहमूलमनेकस्कन्धवाहनम् । रम्यं ह्यविरलच्छायं दशयोजनमण्डलम् तत्र भूतवटं नाम नानाभूतगणालयम् । महदेवस्य प्रथितं त्र्यम्बकस्य महात्मनः । दीप्तमायतनं तत्र सर्वलोकेषु विश्रुतम् वराहगजसहसँशार्दूलकरभाननैः । गृध्रोलूकमुखैश्चैव मेषोष्ट्राजमहमुखैः कदम्बैविकटैः स्थूलैर्लम्बकेशतनूरुहैः। नानावर्णाकृतिधरैर्मानसंस्थानसंस्थितैः दीप्तैरनेकैरुपास्यैभूतैरुग्रपराक्रमैः । अशून्यमभन्नित्यं महपरिषदैस्तथा तत्र भूतपते र्तृत नित्यं पूजां प्रयुञ्जते । झरैः शर्वोपव्हैमैरीडिण्डिमगोमुखैः रणितालसितोतृनित्यं बलितजतैः। विस्फजतशतस्तत्र पूजायुक्ता गणेश्वराः ।। प्रोताः पुरारिप्रमथास्तत्र क्रीडापराः सदा सिद्धदेषुषगन्धर्वयक्षनागेन्द्रपूजितः । स्थाने तस्मिन्महादेवः साक्षाल्लोकशिवः शिवः २३ २४ २५ २६ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्तेऽनुषङ्गपादे भुवनविन्यासो नाम चत्वारिंशोऽध्यायः ।।४०।। हजारहजार डगोवाली सीढियाँ बनी हुई है ।१८। उसी देवकूट पर्वत पर दस योजन विस्तृत एक भूतवट नाम का वृक्ष है। जिखके पत्ते चिकने, जडं विशाल, अनेक तने और जिसकी घनी छाया है । उस महावृक्ष पर नीचेऊषर अनेक जीव निवास करते है । त्रिनयन महात्मा महादेव का वहाँ तीनों लोकों में विख्यात एक भास्वर स्थान है ।१६२०॥ सुअर, हाथी सिंह. भालू. बाघ, करभ, गीघ, उल्लू, भेड़ा, ऊँट और बकरे की तरह मुंहवाले उग्र पराक्रमी तथा अनेक प्रकार के भयङ्कर मुंहवालेविकटस्थूल, लम्बे केशोंवाले, नाना वर्ण और आकृति धारण करनेवालेदेदीप्यमान भूत प्रेतादि से और महापरिषदों से वह स्थान सदा भरा रहता है ।२१-२३। भूतगण वहाँ भूतपति महादेव की पूजा नित्य क्रिया करते है । झाँझ, शङ, नगाडा, भेरी, डमरू, गोमुख आदि बाजे बजाकर नाचगान और भयङ्कर कोलाहल के साथ प्रथमदि गणेश्वर वहीं महादेव की पूजा करके प्रसन्नता प्राप्त करते और क्रीड़ा किया करते हैं । इस प्रकार साक्षात् लोककल्याण कारक महादेव की उस स्थान में सिद्ध, गन्धर्व, यक्ष और पूजा किया करते है ।२४२६ देव, नाग सदा श्री वयुपुराण का भुवनविन्यास नामक चालीसव अध्याय समप्त ।।४०।। ।