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वायुपुराणम्

तथैव शैलवरयोः कुमुदाञ्जनयोरपि । अन्तरे केसरद्रोणिरनेकायामयोजना ४५
द्विबाहुपरिणाहैस्तस्त्रिहस्तायतविस्तृतैः । चन्द्रांशुवर्णाव्यकोशैर्मत्तषट्पदनादितैः ४६
मधुसपैरजः पृक्तैमहागन्धैर्मनोहरैः। शबलं तद्वनं भाति कुसुमैः सर्वकालजैः ४७
तत्र विष्णोः सुरगुरोर्दीप्तमायतनं महत् । प्रकाशं त्रिषु लोकेषु सर्वलोकनमस्कृतम् ४८
अन्तरे शैलवरयोः कृष्णपाण्डुरयोरषि। त्रिशद्योजनविस्तीर्ण नवत्यायतयोजनम् ॥४३
श्लक्ष्णसेकशिलं देशं वृक्षववद्वियजतम् । सुखपादप्रचारं च निम्नोन्नतविवजतम् ५०
मध्ये तु सरसस्तस्य रम्या तु स्थलपमिनी । सहस्रपत्रैर्याकोशैश्छत्रमानैरलंकृता ।५१
पुण्डरीकैर्महापद्म मरुचिरैन्धशालिभिः । शतपत्रैश्च विकचैरुत्पलैर्नालपत्रकैः ५२
मदोत्कटैर्मधुकरैभ्रमरैश्च मदोत्कटः। मृ दुगद्गदकण्ठानां किंनराणां च निस्वनैः ५३
उपगीतपदमखण्डाढया विस्तीर्णा स्थलqमीि । यक्षगन्धर्वचरित सिद्धचारणसेवित ५४
मध्ये तस्याश्च पद्मिन्याः पवयोजनमण्डलः। न्यग्रोधो विपुलस्कन्धो ह्यनेकारोहण्डितः ।।५५
तत्र चन्द्रप्रभः श्रीमान्पूर्णचन्द्रविभाननः । सहस्रवदनो देवो नीलवासः सुरारिह ५६
अञ्जनाचल नामक श्रेष्ठ पर्वतों के बीच बहुत योजनों में फैली हुई एक केसर द्रोणी है । वहाँ का वन सभी ऋतुओ मे खिलनेवाले कुसुमों से रंगविरंगा सा शोभित होता है । वे खिले हुये फूल डेढ हाथ लम्बे चौड़े, चन्द्रमा की तरह इवेत है और उन पर मतवाले भरे गुंजते रहते हैं। वहाँ सुरगुरु विष्णु का एक देदीप्यमान महान् मन्दिर है, जो तीनो लोकों मे प्रकाशमान ओर सव के द्वारा वन्दनीय है ।४४४८। कृष्ण ओर पाण्डुर नामक श्रेष्ठ पर्वतों के बीच नव्वे योजन लम्बा और तीस योजन चौड़ एक देश है, जिसमे चिकनी सो एक ही शिला एक छोर से दूसरे तक विी है । लता वृक्ष आदि वहाँ कुछ नही है । चलनेवालो के लिये वहाँ बड़ी सुविधा है; क्योंकि ऊबड़-खाबड़ भूमि वहाँ कही भी नही है ।४६-५०उनके बीच एक सरोवर है, जिसमें एक रमणीय स्थल-पत्रिनी है । खिले हुये सहस्रपत्र वाले व मलो से वह सरोवर मालूम पड़ता है मानो अनेक छत्रों से वह अलंकृत है । इस सरोवर में मनोहर गन्धों से युक्त महापद्म. पुण्डरीक और खिले हुये शतपत्र, उत्पल नीलपत्र एवं मदमत्त भ्रमर तथा मदमत्त मधुकर सुशोभित हैं । कोमल कण्ठवाले किन्नरों के गीतों से गद्गद् यह पद्मवन सदा निनादित रहता है । यह स्थल-पयिनी अतीव विस्तीर्ण है । यक्षगन्धर्व यहाँ विचरण करते रहते हैं और सिद्ध-चारण उसकी देख-रेख करते रहते है |५१-५४के पाँच की । उस पद्मवन बीच योजन परिधि मे अनेक शाखा-प्रशाखाओं से युक्त विशाल स्कन्धवाला एक न्यग्रोध ( वट ) का वृक्ष है । वहाँ असु निहंता श्रीमान् सहस्रमुखधारी नोलाम्बर देव विराजमान हैं। इनी कान्ति चन्द्रमा की तरह है और इनके