पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१७०

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त्रयोविंशोऽध्यायः १५१ श्वेतश्चैव शिखश्चैव श्वेताश्वः श्वेतलोहितः । चत्वारस्ते महात्मानो ब्राह्मणा वेदपारगाः ॥।११७ ततस्ते ब्रह्मभूयिष्ठा दृष्ट्वा ब्रह्मगतं पराम् । तत्समीपं गमिष्यन्ति पुनरावृत्तिदुर्लभाम् ११८ पुनस्तु मम देवेशो द्वितीयद्वापरे प्रभुः । प्रजापतिर्यदा व्यासः सत्यो नाम(*भविष्यति ११६ तदा लोकहितार्थाय सुतारो नाम नामतः। भविष्यामि कलौ तस्मैिंल्लोकानुग्रहकारणात् १२० तत्रापि मम ते पुत्रा भविष्या नाम नामतः)। दुन्दुभिः शतरूपश्च ऋचीकः केतुमांस्तथा ।।१२१ प्राप्य योगं तथा ज्ञानं ब्रह्म चैव सनतनम् । रुद्रलोकं गमिष्यन्ति पुनरावृत्तिदुर्लभम् ॥१२२ तृतीये द्वापरे चैव यदा व्यासस्तु भार्गवः । तदा ह्यहं भविष्यामि दमनस्तु युगान्तिके ॥१२३ तत्रापि च भविष्यन्ति चत्वारो मम पुत्रकाः । विशोकश्च विकेशश्च विशापः शापनाशनः ॥१२४ तेऽपि तेनैव मार्गेण योगोक्तेन महौजसः । रुद्रलोकं गमिष्यन्ति पुनरावृत्तिदुर्लभम् ।।१२५ चतुर्थे द्वापरे चैव यदा व्यासोऽङ्गिराः स्मृतः । तदाऽप्यहं भविष्यामि सुहोत्री नाम नामतः । तत्रापि मम सत्पुत्राश्चत्वारश्च तपोधनः १२६ भविष्यसि द्विजश्रेष्ठ योगात्मानो दृढव्रताः । सुमुखो दुर्मुखश्चैव दुर्दमो दुरतिक्रमः १२७ प्राप्य योगगfत सूक्ष्मां विमला दग्धकिल्बिषा । तेऽपि तेनैव मार्गेण गमिष्यन्ति न संशयः ॥१२८ होंगे । वे चारों ही ब्रह्मभूयिष्ठ ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मगति को देखकर ब्रह्म के समीप अर्थात् हमारे समीप आयेंगे, जहाँ से कि वे फिर नहीं लौटेगे ।११६-११८ जब द्वितीय द्वापर युग में प्रभु प्रजपति देव-देव सत्य व्यास नाम से अभिहित होंगे, तब हम संसार के कल्याण के लिये सुतार नाम ग्रहण करेगे । उस कलिकाल में सांसारिकों पर अनुग्रह करने के लिये हमें दुन्दुभि, शतरूप, ऋचीक और केतुमान् नामक चार पुत्र होंगे । वे योग तथा शान को प्राप्त करं एवं सनातन ब्रह्म को जानकर रुद्रलोक में गमन करेंगे, जहाँ से कि लौटा नही जता है ।११९१२२तृतीय द्वापर मे जब भार्गव नाम से व्यास रहेंगे, तब हम उस युगान्त में दमन नाम से प्रसिद्ध होंगे ।१२३। उस समय भी हमें विशोक, विकेश, विशाप और शापनाशन नामक चार पुत्र होगे ।१२४वे महतेजस्वी पुत्रगण उसी योगविधान-पढित से, जहाँ से नहीं लौट जाता है, उस रुद्रलोक में गमन करेगे ।१२५। चतुर्थे द्वापर में जब व्यास अङ्गिरा कहलायेंगे, तब हमारा सुहोत्री नाम होग ।१२६उस समय भी हमें सुमुख, दुर्मुख, दुर्दम और दुरतिक्रम नामक चार तपस्वी पुत्र होंगे । ये चारों ही तपस्वी, योगी, दृढ़व्रत और द्विजश्रेष्ठ होगे । वे योग की सूक्ष्म गति को प्राप्त कर निष्पाप और विमल हो जायेंगे ओर उसी मार्ग से वे भी रुद्रलोक गमन करेंगे ।१२७-१२८ | पंचम द्वापर में जब व्यास सविता कहलायेंगे, तब हम

  • धनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्थो ग. पुस्तके नास्ति ।