पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१६८

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त्रयवंशोऽध्यायः १४६ इत्येवमुक्तो भगवान्ब्रह्मा रुद्रेण वै द्विजाः । प्रणम्य प्रयतो भूत्वा पुनराह पितामहः ॥६७ ब्रह्मोवाच भगवन्देवदेवेश विश्वरूपो (प) महेश्वरः(र)। इस्तव महादेव तनवो लोकवन्दिताः &८ विश्वरूप महत्त्व कस्मिन्काले महाभुज । कस्यां वा युगसंभूत्यां द्रक्ष्यन्ति त्वां द्विजातयः ।ee केन वा तत्त्वयोगेन ध्यानयोगेन केन वा। तनवस्ते महदेव शक्या द्रष्टुं द्विजालिभिः १०० भगवानुवाच तपसा नैव योगेन दानधर्मफलेन वा। न तीर्थफलयोगेन ऋतुभिर्वा सदक्षिणैः १०१ न वेदाध्यापनैर्वाऽपि न वित्तेन निवेदनैः। शक्योऽहं मानुषेर्देष्टुमृते ध्यानात्परं न हि ।।१०२ साध्वो नारायणश्चैव विष्णुस्त्रिभुवनेश्वरः। भविष्यतीह नाम्ना तु वाराहो नाम विश्रुतः ॥१०३ चतुर्बाहुश्चतुष्पादश्चतुर्नेत्रश्चतुर्मुखः। तदा संवत्सरो भूत्वा यज्ञरूपो भविष्यति । षडङ्गश्च त्रिशीर्षश्च त्रिस्थानस्त्रिशरीरवान् १०४ कृतं त्रेता द्वापरं च कलिश्चैव चतुर्युगम् । एतस्य पादश्चत्वारः अ(श्च)ङ्गनि क्रतवस्तथा १०५ कभी नही लौटेगे ८४६ ६ हे द्विजगण ! जब रुद्र ने भगवान् ब्रह्मा से इस प्रकार कहा, तब पितामह ने नन्न होकर फिर कहा ।e७ ब्रह्म योले - "देव ! देवेश ! भगवन् ! आप विश्वरूपधारी महेश्वर है । महादेव ! आपके ये शरीर लोकपूज्य हैं; किन्तु हम जानने की इच्छा करते हैं कि, विश्वरूप ! महासत्त्व, महाभुज ! कब किस काल में और किम युग में द्विजातिगण आपको देख सकेंगे ? महादेव ! किस तत्त्वयोग से, किस ध्यान धारणा से द्विजातिगण आपकी मूर्ति ता दर्शन कर सकेगे ?" ।९८-१०० भगवन् बोले-' तपस्य, योग, दानधर्म के फल, तीर्थाटन, दक्षिणा सहित यज्ञ, वेदों का अध्यापन, धनों का दान आदि से नही बल्कि केवल ध्यान के द्वारा ही मनुष्य हमें देख सकते हैं १०१-१०२॥ त्रिभुवनपति नारायण विष्णु ही एक मात्र साघनीय हैं । वे वाराह नाम से विभृत होंगे ।१०३। उन्हें चार वाहु चार पैर, चार नेत्र और चार मुख होंगे । उस समय वे संवत्सर होकर यशस्वरूप होंगे । वे षडङ्ग, त्रिशीर्ष, त्रिस्थान और त्रिशरीरवान् होंगे ।१०४। कृतत्रेता, द्वापर और कलि ये चारों युग उनके चार पाद होंगे । सकल यज्ञ उनके अङ्ग, चारों वेद चारों भुजाये, ऋतु और ऋतु-सन्धि उनके मुख, दोनों अयन और दोनों अयनमुख उनकी चारों आंखें पर्व यानी फाल्गुनी, आषाढ़ी, कृत्तिका उनके तीनों सिरदिव्य,