पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१६४

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त्रयोविंशोऽध्यायः १४५ ५५ षड्विंशगुणा दोषा द्वात्रिशाक्षरसंज्ञिता। प्रकृति विद्धि तां ब्रह्म त्वत्प्रसूतिं महेश्वरीम् ॥५४ सैषा भगवती देवी तत्प्रसूतिः स्वयंभुवः। चतुर्मुखी जगद्योनिः प्रकृतिगौः प्रकतित प्रधानं प्रकृतिं चैव यदाहुस्तत्त्वचिन्तकाः ५६ अजामेतां लोहितां शुक्लकृष्णां विश्त्रं संप्रसृजमानां सुरूपाम् । अजोऽहं वै बुद्धिमन्विश्वरूप गायत्र गां विश्वरूप हि बुध्वा ५७ एवमुक्त्वा महादेवः अ(चस्त्व)ट्टहासमथाकरोत् । बलितास्फोटितरघं कुहकइनदं तथा ॥१५८ ततोऽस्य पाश्र्वतो दिव्याः सर्वंरूपाः कुमारकः । जटी मुण्डी शिखण्डी च अर्धमुण्डन जज्ञिरे ॥५e ततस्ते तु यथोक्तेन योगेन सुमहौससः। दिव्यं वर्षसहस्र तु उपासित्वा महेश्वरम् ।।६० धर्मोपदेशं नियतं कृत्वा योगमयं दृढम् । शिष्टानां नियतात्मानः प्रविष्टा रुद्रमीश्वरम् ६१ वायुरुवाच ततो विस्मयमापन्नो ब्रह्मा लोकपितामहः। प्रपन्नस्तु महादेवं भक्तियुक्तेन चेतसा । उवाच वचनं सर्वं श्वेतत्वं ते कथं विभो । ॥६२ भगवानुवाच श्वेतः कल्पो यदा ह्यासीदहं श्वेतस्ततोऽभवम् । श्वेतोऽणीषः श्वेतमाल्यः श्वेताम्बरधरः शिवः ॥६३ छब्बीस गुणों से विराजमान है इस माहेश्वरी प्रकृति को ही आप अपनी प्रसूति या जननी कहे ।५१-५४॥ यह चतुर्मुखी, जगद्योनि गोरूपिणी प्रकृति देवी भगवती ही आपकी प्रसूति है । तत्त्वदर्श इसे ही प्रधान वा प्रकृति नाम से कहते है ५५५६इसका जन्म नहीं हुआ है, यह लोहित-शुक्ल, कृष्णा विश्वसृष्टिकारिणी और सुरूपा है । इसी गोरूपिणी विश्वरूपा गायत्री को जान कर हम अज और बुद्धि-सम्पन्न हुये है । ५ । यह कह कर महादेव ने उच्च स्वर से अट्टहास कियः, जिससे उनकी बगल से दिव्य रूपधारी कतिपय कुमार उत्पन्न हुये। इनमें कोई जटी, कोई मुण्डी, कोई शिखण्डी और कोई अङ्ग मुण्डी थे ।५८-५६। वे पराक्रमशाली कुमारगण योगविधान से हजार वर्षों तक महेश्वर की उपासना करते रहे । फिर शिष्ट जनों के लिये नियत योगमय धर्मोपदेश करके वे नियतात्मा कुमारगण रुद्र के शरीर में प्रवेश कर गये ।६०-६१॥ वायु बोले-ऐसा सुनकर लोकपितामह ब्रह्मा अत्यन्त विस्मित हो गये । भक्तियुक्त चित से महादेव की शरण में आकर उन्होंने कहा—विभो ! यह आपमें श्वेतत्व कैसे आया ६२॥ भगवन् बोले—चूंकि, यह श्वेत कल्प है इसलिये हम इस कला के प्रारम्भ से ही श्वेत हो गये । फा० -१६ A =