पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१५०

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एकविशोऽध्यायः १३१ वायुरुवाच घराहस्तु यथोत्पन्नो यस्मिन्नर्थे च कल्पितः । वाराहश्व यथा कल्पः कल्पत्वं कल्पना च य" २६ कल्पयोरन्तरं यच्च तस्य चास्य च कल्पितम् । तत्सर्वं संप्रवक्ष्यामि यथादृष्टं यथाश्रुतम् ।।२७ भवस्तु प्रथमः कल्पो लोकादौ प्रथितः पुरा। ज्ञातव्यो भगवान्यत्र ह्यानन्दः सांप्रतः स्वयम् ।२८ ब्रह्मस्थानमिदं दिव्यं प्राप्तं वा दिव्यसंभवम् । द्वितीयस्तु भुवः कल्पस्तृतीयस्तप उच्यते २६ भवश्चतुर्थो विज्ञेयः पञ्चमो रम्भ एव च । ऋतुकल्पस्तथ षष्ठः सप्तमस्तु क्रतुः स्मृतः । १३० अष्ठमस्तु भवेद्वह्निर्नवमो हव्यवाहनः । सावित्रो दशमः कल्पो भुवस्त्वेकादशः स्मृतः १।३१ उशिको द्वादशस्तत्र कुशिकस्तु त्रयोदशः । चतुर्दशस्तु गन्धर्वो गांधरो यत्र वै स्वरः ३२ उत्पन्नस्तु यथा नादो गन्धर्वा यत्र चोत्थिताः। ऋषभस्तु ततः कल्पो ज्ञेयः पञ्चदशो द्विजाः ॥३३ ऋषभो यत्र संभूतः स्वरो लोकमनोहरः। षड्जस्तु षोडशः कल्पः षड्जना यत्र चर्षीयः ३४ शिशिरश्च वसन्तश्व निदाघो वर्ष एव च । शरद्धेमन्त इत्येते मानसा ब्रह्मणः सुताः ३५ उत्पन्नाः षड्जसंसिद्धाः पुत्रा कल्पे तु षोडशे। यस्माज्जातैश्च तैः षभिः सद्योजातो महेश्वरः ॥३६ तस्मात्समुत्थितः षड्जः स्वरस्कूदधिसंनिभः। ततः सप्तदशः कल्पो मार्जालीय इति स्मृतः ॥३७ वायु वोते–“वराह जिस प्रकार जिस प्रयोजन के लिये उत्पन्न हुये, कल्प का वर नाम पड़ने का कारण, कल्प का स्वरूप, विवृत्ति और दोनों कल्पों का अन्तर जिस प्रकार कल्पित हुआ है, उसे हमने जैसे देखा है, और सुना I है, वैसे ही कह रहे हैं ।२६-२७॥ सृष्टि के पहले भवकल्प हुआ । इस कल्प मे स्वयं ज्ञातव्य आनन्दमय साम्प्रत भगवान् थे । उन्होंने दिव्य सम्भव, आधारभूत ब्रह्म स्थान प्राप्त किया था । हसरा भुवकल्प, तीसरा तपःकल्प , चौथा भवकल्प, पॉचवॉ रम्भकल्प, छत्रॉ ऋतुकल्प, सातवाँ ऋतुकल्प, आठवाँ वह्नि कल्प, नवौं हव्यवाहन कल्पे, दशवॉ सावित्र कल्प, ग्यारहवाँ भुवः कल्प, बारहवॉ कुशिक और चौदहवाँ गान्धार कल्प हुआ । इस कल्प में गान्धार स्वर उत्पन्न हुआ था ।२८-३२। उसी गान्धार स्वर से नाद और गन्धर्वो की उत्पत्ति हुई है। हे ब्राह्मणो ! पन्द्रहवॉ कल्प ऋषभ हुआ, ऐसा जानिये । इसी कल्प मे लोक मनोहर ऋषभ स्वर उत्पन्न हुआ । पञ्ज नामक सोलह कल्प हुआ, जिसमे छः ऋषि प्रसिद्ध थे । शिशिरंवसन्त, निदाघ, वर्षा, शरत् और हेमन्त. नामक ये छवों ऋषि ब्रह्म के मानस पुत्र थे ।३३-३५॥ सोलहवें कल्प मे वे पुत्र षड्ज से उत्पन्न हुए । यतः इन छवों के होने से ऐसा ज्ञात हुआ मानों महेश्वर ही सद्यः स्वयं उत्पन्न हो गए । इसलिये समुद्र की तरह गम्भीर ध्वनि वाला पड्ज स्वर उत्पन्न हुआ। सत्रहव कल्प मार्जालीय नाम से ख्यात है इसलिये कि, इस कल्प में ब्रह्म सम्बन्धी मार्जालीय कमं सृष्ट हुआ था ।३६३७