पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११३६

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दशाधिकशततमोऽध्याया

  • मातामहकुले ये च गतिर्येषां न विद्यते । आवाहयिष्ये तान्सर्वान्दन्कुशपृष्ठे तिलोदकैः

बन्धुवर्गकुले ये च गतिर्येषां न विद्यते । आवाहयिष्ये तान्सर्वान्दर्भपृष्ठे तिलोदकैः + इत्येतैर्मन्त्रैः सजलैस्तिलैर्दर्भेषु ध्यानवान् | आवाह्याभ्यर्च्य तेभ्यश्च पिण्डान्दद्याद्यधानसम् अस्मत्कुले मृता ये च गतिर्येषां न विद्यते । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् मातामहकुले ये च गतिर्येषां न विद्यते । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् बन्धुवर्गकुले ये च गतिर्येषां न विद्यते । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् अजातदन्ता ये केचिद्ये च गर्भे प्रपीडिताः । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् अग्निदग्धाश्च ये केचिन्नाग्निदग्धास्तथाऽपरे । विद्युच्चौरहता ये च तेभ्यः पिण्डं ददाभ्यम् दावदाहे मृता ये च सिंहव्याघ्रहताश्च ये । दंष्ट्रिभिः शृङ्गभिर्वाऽपि तेम्यः पिण्डं ददाम्यहम् उद्बन्धनमृता ये च विषशस्त्रहताश्च ये | आत्मापघातिनो च ये तेभ्यः पिण्डं ददाम्यहम् ये अरण्ये वर्त्मनि वने क्षुधया तृषया मृताः । भूतप्रेतपिशाचाद्यैस्तेभ्यः पिण्डं ददाम्यहम् १११५ ॥३१ ॥३२ ॥३३ ॥३४ ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३८ ॥३६ ॥४० ॥४१ भी मैं इसी कुशासन पर तिलमिश्रित जल द्वारा आवाहित कर रहा हूँ, जिनकी कहीं भी गति नहीं हुई । इसी प्रकार बन्धुवर्गों के कुलों में भी उन मरे हुए लोगों को इस कुशासन पर तिलमिश्रित जलदान के द्वारा आवाहित कर रहा हूँ जिनकी कहीं गति नहीं है | २६-३२। इन उपर्युक्त मन्त्रों द्वारा तिलमिश्रित जल कुशों पर उन सभी मृतकों का ध्यान करना चाहिये | आवाहन के उपरान्त भली भांति पूजन कर उन्हें क्रमानुसार पिण्डदान करना चाहिये । अपने कुल में उन मरे हुए लोगों को, जिनकी कहीं भी गति नहीं हैं, उवारने के लिए में यह पिण्डदान कर रहा हूँ, मातामह के कुल में मरे हुए उन लोगों को उबारने के लिए, जिनको कहीं भी गति नही है, मैं यह पिण्डदान कर रहा हूँ । बन्धुवर्गों के कुल में मरे हुए उन लोगों को उबारने के लिए मैं यह पिण्डदान कर रहा हूँ, जिनको कहीं भी गति नहीं मिली |३३-३६ | जो बिना दाँत जमे ही मर गये थे, गर्भ में ही जिनकी मृत्यु हो गई थी, ऐसे लोगों को उवारने के लिए मैं यह पिण्डदान कर रहा हूँ । अग्नि में जल कर मरे हुए जो कोई हों, अग्नि में विना जलाये गये, जो कोई हों ऐसे लोगों के लिये मै यह पिण्डदान कर रहा हूँ | वनाग्नि में जो मर गये थे, सिंहों एवं व्याघ्रों से जिनकी मृत्यु हुई, अथवा अन्याय दाढ़ों वाले, सींगों वाले, हिंस्र जानवरों से जिनकी मृत्यु हुई, उनके उद्धार के लिए मैं यह पिण्ड प्रदान कर रहा हूँ । स्वयं फाँसो के लगाने से जिनको मृत्यु हुई, विषों एवं शस्त्रों मे जिन्होंने आत्महत्या करके अपने प्राण गँवा दिये, ऐसे आत्महत्यारों के उद्धार के लिये मैं यह पिण्डदान कर रहा हूँ |३७-४०१ घोर जंगली मार्गों में जो विवश होकर क्षुधा एवं प्यास से मर गये थे, भूतों प्रेतों एवं

  • न विद्यतेऽयं श्लोकः क. पुस्तके |

+ एतच्चिह्नान्तर्गतग्रस्थो नास्ति ख. पुस्तके |