पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०८३

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• १०६२ वायुपुराणम् 'हरेभंगवतः साक्षादाविर्भावस्थली हि सा | कारोमपश्यद्भ्रूमध्ये मायामाधारसंस्थितास् लिङ्गदंशे ततः काञ्चीमवन्तीं नाभिमण्डले | कण्ठस्थांद्वारकामेषां प्रयागं प्राणगं तथा सव्यापसव्ययोस्तेषां गङ्गाऽपि यमुना नदी | मध्ये सरस्वती साक्षाद्गयाक्षेत्रं तथाऽऽनने हनुग्रीवामध्यगतं प्रभासक्षेत्रमुत्तमम् । बर्याश्रममेतेषां ब्रह्मरन्ध्रे ददर्श ह पौण्डूवर्धननेपालपोठं नयनयोयेंगे। पीठं पूर्णगिरि नाम ललाटे समदृश्यत कण्ठे च मथुरापीठं काञ्चीपीठं कटिस्थितम् । जालंधरं तथा पोठं स्तनदेशेष्वदृश्यत भृगुपीठं कर्णदेशे अयोध्यां नासिकापुढे । ब्रह्मरन्ध्रे स्थितं ब्राह्मं शैवं सीमन्तसोमनि शाक्तं जिह्वाग्रधिषणं वैष्णवं हृदयाम्बुजे | सौरं चक्षुष्प्रदेशस्थं वौद्धच्छायासुसंगतम् सौत्रार्माण कण्ठदेशे पशुबन्धमथोरसि | वाजपेयं कटितटे अग्निहोत्रं तथाऽऽनने अश्वमेधं कटितटे नरमेधमथोदरे | राजसूयं शिरोदेशे आवसथ्यं तथाऽधरे ऊर्ध्वोठे दक्षिणाग्नि च गार्हपत्यं मुखान्तरे | हव्यं श्रुतौ मन्त्रभेदास्तथा रोमस्ववस्थितान् ॥ भृत्यैरिव महाराजं पुराणेयमिश्रितैः ॥७५ ।७६ ॥७७ ||७८ ॥७३ 1150 ॥८१ ||८२ ॥८३ ॥८४ ॥८५ मथुरापुरी का दर्शन किया, क्योंकि वह पवित्र पुरी स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण की उत्पत्ति स्थली है ।७१-७४३। उनकी भौहों के मध्य में काशी का दर्शन किया, आधार स्थल में माया पुरी दिखाई पड़ी। लिङ्ग प्रदेश में काञ्ची, नाभिमण्डल में अवन्ती, क प्रदेश में द्वारका एवं प्राणी में प्रयाग को स्थिति देखो। उन वेदों के दाहिने एवं वायें पावों में गङ्गा एवं यमुना प्रवहमान थी । मध्यदेश में साक्षात् सरस्वती की धारा थी, मुख प्रदेश में गया क्षेत्र था । दाढ़ी और कण्ठ प्रदेश के मध्य में उत्तम प्रभास क्षेत्र था, इन वेदों के ब्रह्म रन्ध्र में व्यासदेव ने वदरिकाश्रम का दर्शन किया । ७५-७८। दोनों नेत्रों में पौण्ड्रवर्धन और नेपाल – ये दो पीठ तथा ललाट प्रदेश में पूर्णगिरि नामक पीठ का दर्शन किया। कण्ठ में मथुरा पोठ, कटि प्रदेश में काञ्ची पीठ तथा स्तन प्रदेशो में जालन्धर पीठ का व्यासदेव ने दर्शन प्राप्त किया। कणं प्रदेश में उन्होंने भृगुपीठ का तथा नासिकापुट में अयोध्या का दर्शन किया। इसी प्रकार ब्रह्मरम्ध्र में अवस्थित ब्राह्म तीर्थ तथा सीमन्त प्रदेश में अवस्थित शेव तीर्थ का दर्शन किया। उनको जिलाओं के अग देश में शक्ति एवं हृदय कमल मे वैष्णव तीर्थो का निवास था । चक्षु प्रदेशों में सौर नौर छाया में चौद्ध तीर्थों के दर्शन हुए । कण्ठ देश में सौन्तामणि यज्ञ और उरु प्रदेशों में पशु बन्धन देखा । दक्षिण कटि प्रदेश में वाजपेय तथा मुख प्रदेश मे अग्नि होत्र का दर्शन किया ।७९-८३। इसी प्रकार नाम कटि प्रदेश में अश्वमेध, उदर में नरमेष, शिरोदेश में राजसूय तथा अधर में आवसथ्य का दर्शन किया । वेदों के ऊपरी गोष्ठों में दक्षिणाग्नि को मुखमध्य में गार्हपत्य