पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०८

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दशमोऽध्यायः ८६ ७४ आदित्यैर्वसुभिः साध्यैरश्विभ्यां चैव सर्वशः । मरुद्भूि गुभिश्चैव ये चान्ये विबुधालयाः ॥७१ यमशुक्रपुरोगैश्च पितृकालान्तकैस्तथा । एतैश्चान्यैश्च बहुभिस्ते धर्माः पर्युपासिताः ७२ ते वै प्रक्षीणकर्माणः शारदस्बरनिर्मलाः। उपासते मुनिगणाः संधायाऽऽत्मानमात्मनि ७३ गुरुप्रियहिते युक्ता गुरूणां वै प्रियेप्सवः । विमुच्य मानुषं जन्म विहरन्ति च देववत् महेश्वरेण ये प्रोक्ताः पञ्च धर्माः सनातनाः । तान्सर्वान्क्रमयोगेन(ण)उच्चमानान्निबोधत ॥७५ प्राणायामस्तथा ध्यानं प्रत्याहारोऽथ धारणा । स्मरणं चैव योगेऽस्मिन्पव धर्माः प्रकीतिताः ॥७६ तेषां क्रमविशेषेण लक्षणं कारणं तथा । प्रवक्ष्यामि तथा तत्त्वं यथा रुद्रेण भाषितम् प्राणायासगतिश्वापि प्राणस्यऽऽयाम उच्यते । स चापि त्रिविधः प्रोक्तो मन्दो मध्योत्तमस्तथा ॥७८ प्राणानां च निरोधस्तु स प्राणायामसंज्ञितः । प्राणायामप्रमाणं तु मात्रा वै द्वादश स्मृताः मन्दो द्वादशमात्रस्तु उज्ञाता द्वादश स्मृताः । मध्यमश्च द्विरुद्धतश्चतुर्विंशतिमात्रिकः ॥८० उत्तमस्तत्त्रिरुञ्चतो मात्राः षत्रिशदुच्यते । स्वेदकम्पविषादानां जननो ह्यतमः स्मृतः ॥८१ इत्येतत्त्रिविधं प्रोक्तं प्राणायामस्य लक्षणम् । प्रमाणं स समासेन लक्षणं च निबोधत ८२ सिंहो वा कुञ्जरो वाऽपि तथाऽन्यो वा मृगो वने । गृहीतः सेव्यमानस्तु मृदुः समुपजायते ८३ I७७ I७ अक्लिष्टकर्मा रुद्रगण, आदित्य, वसु, साध्य दोनों अश्विनीकुमार, मरुद्गण, भृगुवंशीय गण, सुरपुर- वासी शुक्र, यम, पितृ, काल और अन्तक प्रभृति अनेकानेक धार्मिक व्यक्ति उस घर्मों का प्रतिपालन करते हैं ॥७१-७२1 इस धर्म के उपासक वासना से रहित और शरद ऋतु के आकाश के समान निर्मल हो जाते हैं । मुनिगण आत्मा में मन को लगाकर उस घर्म की उपासना करते हैं ।७३। इस धर्म के उपासक गुरु के प्रिय और हितकर कार्य में निरत एवं गुरु के प्रियपात्र होकर मनुष्य जन्म की कुछ चिन्ता न कर देवता की तरह विहार करते हैं ।७४। महेश्वर ने जिन सनातन पाँच धर्मों को कहा है उन्हे हम यथाक्रम से कहते हैं, आप लोग सुने ।७५। माहेश्वर योग के प्राणायाम, ध्यान, प्रत्याहार, धारणा और स्मरण ये ही पाँच धर्म हैं । उनका क्रमशः लक्षण, कारण और तत्त्व, जैसा कि रुद्र ने बताया है, हम कहते है ।७६-७७। प्राण की विस्तारगति को ही प्राणा याम कहते है । वह तीन प्रकार का है, उत्तम, मध्यम और मन्द ।७८। प्राण के निरोध को भो प्राणयाम कहते हैं । प्राणायाम का प्रमाण द्वादश मात्रात्मक है ।७६मन्द प्राणायाम द्वादश मात्रात्मक है, इसके बारह उद् घात हैं । मध्यम प्राणायाम चौबीस मात्रारमक है । इसके दो उद्घत हैं ।८०। उत्तम प्राणायाम की तिरसठ मात्रायें हैं और इसके तीन उद्घात है स्वेदकम्प और विषाद जिससे उत्पन्न हो, वह उत्तम प्राणायाम है ।८१। प्राणा याम का यह त्रिविध लक्षण हुआ । प्रमाण और लक्षण भी अब संक्षेप से सुनिए सिंहहाथींमृग या अन्य बनैले पणुओं को पकड़कर पालने से जैसे धीरेधीरे वे मृदुता धारण करने लगते है वैसे ही अजितेन्द्रियों के लिये फा० -१२